टेक्नोलॉजी की मदद से शिक्षा से वंचित बालिकाओं की पहचान
संस्था के 18 हजार से अधिक स्वयंसेवक संस्था की ओर से उपलब्ध कराई गई ट्रेनिंग और टेक्नोलॉजी की मदद से शिक्षा से वंचित बालिकाओं की पहचान, उनका सर्वे, घर-घर जाकर इन बच्चियों के अभिभावकों को जागरूक करने साथ ही इन बालिकाओं के स्कूल में नामांकन कराने को लेकर जागरूक करने और उनका आधार बनवाने में मदद करने आदि जैसे काम करते हैं। पिछले 15 सालों में इन हजारों स्वयंसेवकों की मदद से एजुकेट गर्ल्स ने सरकार के साथ सहयोग में काम करते हुए समुदायों को बालिका शिक्षा के लिए जागरूक करने में कामयाबी पाई है। इन 15 सालों में संस्था अपने स्वयंसवेकों की इस बड़ी फौज के सहयोग से ही बच्चियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनके अभिभावकों को जागरूक करने में सफल रही है। खास बात ये है कि ये युवा जिन्हें ‘टीम बालिका’ नाम दिया गया है, एक खास सोच-‘मेरा गांव, मेरी समस्या और मैं ही समाधान’ से प्रेरित हैं। इन युवाओं का सपना खुद के साथ अपने गांव का भी विकास करने का है और उनकी नजर में इसके लिए शिक्षा से बढ़कर कोई और साधन नहीं है। शिक्षा से वंचित एक बालिका को स्कूल से जोड़ने के इन स्वयंसेवकों के प्रयासों के सफल होने में कुछ दिन, महीनों से लेकर कई बार साल भी लग जाते हैं। लेकिन बावजूद इसके, ये स्वयंसेवक बिना थके समाज को बेहतर बनाने की कोशिशों में लगे रहते हैं।
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बालिका शिक्षा को बेहतर बनाने के प्रयासों में जुटे
रूढ़िवादी सोच के वजह से नहीं पढ़ पाती लड़कियां राजस्थान के बुंदी जिले में एजुकेट गर्ल्स के साथ पिछले 6 सालों से स्वयंसेवक के रूप में अपने गांव में बालिका शिक्षा को बेहतर बनाने के प्रयासों में जुटे बालमुकुंद कहते हैं, ‘हमारे गांव में रूढ़िवादी सोच के वजह से लड़कियां अपनी शिक्षा जारी नहीं रख पा रही थी। मैं लड़कियों की शिक्षा में सकारात्मक बदलाव लाना चाहता था, लेकिन यह कैसे करना है यह नहीं पता था। जब मैं इस संस्था से जुड़ा तो मुझे लगा कि अपने गांव की लड़कियों को शिक्षा से जोड़कर मैं समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकता हूं। शिक्षा से हमारे गांव की न केवल बेटियों बल्कि बहुओं के जीवन में भी उल्लेखनीय बदलाव आए हैं। हमने गांव में सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना किया और युवा लड़कियों के साथ विवाहित महिलाओं को भी शिक्षा से जोड़ा है।’ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में टीम बालिका सोनम एजुकेट गर्ल्स के साथ पिछले करीब 2 सालों से स्वयंसेवक के रूप में जुड़ी है। आर्थिक समस्याओं से लढने के साथ घर के कामों की जिम्मेदारियां संभालते संभालते पढ़ाई पूरी करने वाली सोनम का कहना है, ‘एजुकेट गर्ल्स संस्था से जुड़कर मैंने अपने गांव में बालिका शिक्षा का प्रचार किया। इस संस्था से जुड़कर मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि हुई, जिसके जरिए मैंने इन बच्चियों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया। मुझे इस बात का सुकून है कि संस्था के साथ मिलकर मैं अपने गांव की कई बच्चियों को शिक्षा की राह दिखा पाई।
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हजारों युवाओं ने गांवों में किया सकारात्मक बदलाव
एजुकेट गर्ल्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महर्षि वैष्णव ने कहा कि एजुकेट गर्ल्स संस्था अगर लाखों की संख्या में बालिकाओं को स्कूलों से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर पाई, तो इसकी सबसे प्रमुख वजह वे हजारों युवा स्वयंसेवक हैं, जिन्होंने नि:स्वार्थ सेवा भाव से अपने गांव में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए दिन-रात मेहनत की है। हजारों युवा स्वयंसेवकों ने अपने गांव को बदलने का जो जज्बा दिखाया है, उसी से असंभव सा लगने वाला ये लक्ष्य हासिल हो पाया है। एजुकेट गर्ल्स संस्था अगर लाखों की संख्या में बालिकाओं को स्कूलों से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर पाई तो इसकी सबसे प्रमुख वजह वे हजारों युवा स्वयंसेवक हैं, जिन्होंने नि:स्वार्थ सेवा भाव से अपने गांव में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए दिन-रात मेहनत की है। हजारों युवा स्वयंसेवकों ने अपने गांव को बदलने का जो जज्बा दिखाया है, उसी से असंभव सा लगने वाला ये लक्ष्य हासिल हो पाया है। इन युवाओं के प्रयासों से उनके आसपास काफी बदलाव आया है। लेकिन अब भी इन स्वयंसेवकों का काम पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि देश में लाखों की संख्या में बच्चियां अब भी शिक्षा से वंचित हैं। देश की हर लड़की को शिक्षित बनाने के सपने को पूरा करने के लिए बहुत काम किया जाना बाकी है, तो इन युवा स्वयंसेवकों का सफर जारी है।