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जयपुर

जब मुगलों के अत्याचार की खुले जुबां नहीं होती थी चर्चाएं भी, उस जमाने में अकबर ने कैसे बंद करा दी गोहत्या, जानिए

राजस्थान के संत दादूदयाल का धार्मिक प्रवचन सुनने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने सन् 1585 में गोहत्या को बंद किया।

जयपुरNov 05, 2017 / 04:36 pm

Vijay ram

how did akbar banned Cow slaughter
जयपुर . हिंदुस्तान की सरजमीं में असंख्य क्षेत्रीय और बाहरी शासकों ने राज किया। सभी के वंशज और अनुज अपने—अपने अग्रज की सत्ता—संपदा संभालने अथवा ताकत जुटाकर स्वंय के कानून—हुक्मों को लागू करते हकूमत करते गए। 15वीं सदी में बाबर के भारत आगमन से मुगलों का दौर शुरू हुआ। वे अन्दिजान (उज़्बेकिस्तान) से यहांं पहुंचे तो बहुत सी चीजें और व्यवस्थाएं अलग पाईं, कई जानवरों को यहां उन्होंने देवता मानकर पूजते देखा। हालांकि, उनसे पहले भी बड़े लुटेरे और इस्लामिक शासकों ने इस सरजमीं पर कदम रखा, लेकिन सभी अपने उद्देश्य—पूर्ण होने के साथ—साथ चले गए या फिर उनकी सल्तनतों का पतन हो गया। लेकिन मुगल डटे रहे, बाबर ने हिंदुस्तान में ही शासन का फैसला किया। इससे बाद जो भी उनका बाशिंदा यहां जन्मा.. अपने—अपने काल में अलग—अलग शाही—फरमान और व्यवस्थाएं लागू करते हुए राज किया। उनके पोते अकबर ने 14 फरवरी 1556 में 13 वर्ष की उम्र में गद्दी संभाली। अकबर ने बहुत से ऐसे कर खत्म किए जो यहां गैर—मुस्लिमों के दण्डकारी थे, कई व्यवस्थाएं और फरमान बदले भी गए। उन्हीं में से एक उनका फैसला गौ—हत्या पर रोक लगाने का था।
संत दादूदयालजी के सुझाव पर अकबर ने गोहत्या बंद की थी
वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र सिंह शेखावत के आलेख में बादशाह अकबर और संत दादू के संवाद—संयोजन का उल्लेख किया गया है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, राजस्थान के कबीर और आमेर नरेश मानसिंह प्रथम के गुरु संत दादूदयाल का धार्मिक प्रवचन सुनने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने सन् 1585 में गोहत्या को बंद किया। चमत्कारों की बातें सुन कर अकबर ने मुगल सेनापति मानसिंह के माध्यम से संत दादू को फतेहपुर सीकरी बुलवाया था। अकबर ने दादू के प्रवचन 40 दिन तक सुने।
मानसिंह ने दादूजी को अकबर के बुलावे का निमंत्रण दिया लेकिन वे जाने को तैयार नहीं हुए। बाद में विशेष आग्रह पर दादू अकबर के पास पंहुचे। दादू के चमत्कारों की किवदंतियां आज भी दादूपंथ के साहित्य में हैं। कहते हैं कि दादू ने मुगल दरबार में अचानक प्रकट हो अकबर सहित सभी दरबारियों को प्रभावित कर दिया था। पुष्कर के संत नारायण दास ने दादू के योग भक्ति चमत्कार की बातें लिखी है। एक योगी ने दादू दयाल की परीक्षा लेने के लिहाज से कहा कि दादूजी आप अकबर से मिलकर खुद को बड़ा संत मानने लगे हो। मैं चाहू तो तुम्हें आकाश में उड़ा सकता हंू। यह सुन दादू के शिष्य टीलाजी ने योगी को आसमान में उड़ा दिया। योगी के क्षमा याचना पर वापस उतारा तब वह दादू के चरणों में गिर गया।
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योगी और संतों ने दादू की परीक्षा लेने में कसर नहीं छोड़ी। एक जना बोरे में मांस ले आया तब दादूजी ने बोरा खोला तो उसमें गुड़ खांड निकली। आमेर में रहते हुए दादू ने खुद को केदार देश में देवी मंदिर में प्रकट कर लिया । वहां के नरेश पदम सिंह को अहिंसा का पाठ पढाया और देवी को बलि देना बंद करवाया। परीक्षा लेने वाले संतों से दादू कहते कि ब्रह्म को पहचानो व्यर्थ की सिद्धियों के पीछे मत भागो।
दादूजी आमेर के दलाराम बाग व बाद में मावठा के पास दादू आश्रम में १४ साल रहे। इतिहासकार आनन्द शर्मा के मुताबिक महात्मा ठंडेराम व गूदड़ी वाले बाबा गणेशदास की समाधि के पास शिला पर व आश्रम की गुफा में दादू तपस्या करते रहते। आमेर के सौंखिया खंडेलवाल दादू की सेवा में रहा। जयपुर बसा तब सौंखियोंं का रास्ता में रहने लगे। सौंखियों के पास दादू चरण कमल एक वस्त्र में अंकित हैं। हरिनारायण पुरोहित की सुंदर ग्रंथावली में दादू के पद चिन्हों की बात लिखी है। दादू शिष्य सुंदरदास का ननिहाल सौंखिया खंडेलवालों में होने से यह खानदान दादूजी से जुड़ा। आमेर के दादू द्वारा में दादू की श्याम छड़ी के अलावा खड़ाउ व गूदड़ी भी मौजूद है। संत ठंडे राम ने सन् १८९७ में आमेर दादू द्वारा का जीर्णोद्धार करवाया।
दादू के शिष्य रज्जब अली खान ने दादूजी को राजस्थान का कबीर बताया।
गुरुदादू कबीर की, काया भयी कपूर
रज्जब अज्जब देखिया,सगुण निर्गुण होय।

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