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जयपुर

सुख-समृद्धि का ढेर लगाते हैं ये हनुमान जी, रोजगार के लिए जाने वाले पहले यहां लगाते हैं ढोक

हनुमत पीठों में अम्बाबाड़ी के पास ढहर का बालाजी मंदिर ( Dher Ke Balaji Temple ) की पीठ प्राचीनकाल से लोक पूज्य रही है। मंदिर परिसर के चारों तरफ 68 बीघा भूमि में बाग-बगीचे लहलहाते थे। मंदिर के कारण झोटवाड़ा रेलवे स्टेशन का नाम जयपुर पश्चिम से बदल कर ढहर का बालाजी रेलवे स्टेशन किया गया…

जयपुरOct 16, 2019 / 02:51 pm

dinesh

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जयपुर। गुलाबीनगर की हनुमत पीठों में अम्बाबाड़ी के पास ढहर का बालाजी मंदिर ( Dher Ke Balaji Temple ) की पीठ प्राचीनकाल से लोक पूज्य रही है। मंदिर परिसर के चारों तरफ 68 बीघा भूमि में बाग-बगीचे लहलहाते थे। मंदिर के कारण झोटवाड़ा रेलवे स्टेशन का नाम जयपुर पश्चिम से बदल कर ढहर का बालाजी रेलवे स्टेशन किया गया। परसरामपुरा में बने मंदिर के कारण लोग गांव का नाम भूल गए और ढहर का बालाजी कहने लगे।
सात फीट ऊंची है हनुमान जी की मूर्ति
पुराने समय में वर्षाकाल में लोग परिवार सहित बैलगाडिय़ों से सवामणी और गोठ करने मंदिर में आते। करीब सात फीट ऊंची हनुमत मूर्ति है, जो राम-लक्ष्मण को पाताल लोक में ले जाने की छवि का दर्शन कराती है। एक हाथ में गदा, दूसरे से पर्वत उठाते हुए हनुमानजी हैं। अब करीब तीन बीघा में सिमटे मंदिर के चारों तरफ घनी आबादी बस गई है। आमेर नरेश जयसिंह प्रथम के समय यहां शिव व हनुमान मंदिर था। इसके आसपास के तालाब में ढेर सारा पानी और मिट्टी के ढेर होने से मंदिर को ढेर का बालाजी कहने लगे।
सुख-समृद्धि का लगाते हैं ढेर
लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि शिव व हनुमानजी सुख-समृद्धि का ढेर करने वाले हैं। हनुमानजी के अलावा परिसर में भगवान शंकर के तीन प्राचीन मंदिर हैं। एक शंकर योगी रूप में दूसरे शृंगारिक रूप में परिवार साथ विराजे हैं। दक्षिण पूर्व में तीसरे शिवजी की सहस्त्राभिषेक पूजा अधिक होती है।
कभी दुर्गम जंगल के मंदिर में मोरिजा ठाकुर कल्याण सिंह और कुली खाचरियावास के मोहब्बत सिंह दर्शन करने आते थे। आमेर नरेश जयसिंह प्रथम के समय अचानक धनवान बने ब्राह्मण जयसा बोहरा आकेड़ा गांव छोड़ नांगल आए, तब रास्ते में इस मंदिर के वट वृक्ष की छाया में दाल-बाटी बनाकर खाई। पंडित राजेश पंचोली के मुताबिक नंदकुमार के वंशज विजयपाल पंचोली और लहरीलाल के समय मंदिर को ख्याति मिली। लहरीजी जयपुर के प्रसिद्ध ज्योतिषियों में गिने जाते थे। राज दरबार में लहरीजी का बड़ा सम्मान रहा। खाड़ी देशों में रोजगार के लिए जाने वालों की मंदिर के प्रति आस्था रही है।

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