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जयपुर

108 खंभों पर टिका है यह बिना चूने गारे से बना तीन मंजिला मंदिर

dev somnath mandir dungarpur: प्राचीन मंदिरों में अपूर्व धरोहर है डूंगरपुर से उत्तर-पूर्व में 20 किलोमीटर सोम नदी के तट पर अवस्थित देव सोमनाथ मंदिर, जो भगवान शिव की भक्ति का पवित्र स्थल है। मंदिर में दो स्वयंभू शिवलिंग के साथ कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित है। बारहवीं सदी में बने देव सोमनाथ मंदिर को स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस मंदिर का निर्माण राजा अमृतपाल देव ने कराया था। देव गांव व सोम नदी के तट पर अवस्थित होने के कारण यह मंदिर देव सोमनाथ के न

जयपुरFeb 25, 2020 / 02:22 pm

Devendra Singh

108 खंभों पर टिका है यह बिना चूने गारे से बना तीन मंजिला मंदिर

108 खंभों पर टिका है यह बिना चूने गारे से बना तीन मंजिला मंदिर

देवेन्द्र सिंह / जयपुर. प्राचीन मंदिरों में अपूर्व धरोहर है डूंगरपुर से उत्तर-पूर्व में 20 किलोमीटर सोम नदी के तट पर अवस्थित देव सोमनाथ मंदिर, जो भगवान शिव की भक्ति का पवित्र स्थल है। मंदिर में दो स्वयंभू शिवलिंग के साथ कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित है। बारहवीं सदी में बने देव सोमनाथ मंदिर को स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण राजा अमृतपाल देव ने कराया था। देव गांव व सोम नदी के तट पर अवस्थित होने के कारण यह मंदिर देव सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंदिर की बनावट गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तरह होने से कुछ लोग तो इसे सोमनाथ मंदिर की प्रतिकृति ही मानते है। कहने को तो मंदिर पुरातत्व विभाग की संरक्षित स्मारक घोषित है, लेकिन रख रखाव के अभाव में मंदिर अब जर्जर हो रहा है।
108 खंभों पर टीका है मंदिर
सोम नदी के तट पर अवस्थित तीन मंजिला मंदिर में करीब 108 खंभों पर टिका हुआ है। इसका प्रत्येक खंभा कलात्मक है। खंभों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। खास बात यह है कि इस तीन मंजिले मंदिर के निर्माण में कही पर भी चूने, गारे या पत्थरों को जोडऩे के लिए किसी कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया गया। मंदिर की चिनाई में पत्थरों को काटकर एक-दूसरे से क्लेंप कर ऐसे फंसाया गया है कि वह बिल्कुल भी नहीं हिलते।
मालवा शैली में बना है मंदिर
पुरातत्व विभाग की ओर से लगाए गए शिलापट पर लिखा है कि मालवा शैली में निर्मित इस विशाल शिव मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में स्थानीय राजपूत शासकों ने करवाया था। यह तीन मंजिला मंदिर योजनाकार में गर्भगृह, अंतराल, संपूर्ण खलदार, सभामंडप युक्त है। इसमें तीन दिशाओं में प्रवेश द्वार बने हुए है। मंदिर में कुछ जगह 14वीं शताब्दी के अस्पष्ट शिलालेख भी लगे हुए है। मंदिर के जगमोहन की छत पर भी बहुत ही बेहतरिन नक्काशी की गई है। यह बेहद दर्शनीय है, जिसके कला वैभव को निहारने के लिए हजारों पर्यटक वहां पहुंचते हैं। पुरातत्व विभाग के अधीन यह मंदिर उदयपुर और डूंगरपुर की सीमा को अलग करने वाली सोम नदी के तट पर बना हुआ है। मंदिर के पुजारी नरेन्द्र पहाड़ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित दोनों ही शिवलिंग स्वयंभू यानि अपने आप प्रकट हुए है। लेकिन मंदिर की निर्माण शैली और विशालता को देखते हुए यह असंभव सा प्रतित होता है। मंदिर में दो जगह पाषाण स्तंभों पर शिलालेख भी लगे हुए हैं, जो अस्पष्ट है। इस मंदिर को गुजरात के सोमपुरा शिल्पकारों ने उस दौर के शासनकाल में बनाया था, लेकिन इसके स्पष्ट शिलालेख नहीं है।

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