युवाओं के उत्कर्ष में राष्ट्र का सर्वोत्कृष्ट देखने वाले स्वामी विवेकानंद ही वह महामना थे जिन्होंने कहा था कि किसी राष्ट्र को राजनीतिक विचारों से प्रेरित करने के पहले जरूरी है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों का प्रवाह किया जाए।
स्वामी विवेकानंद जी की राजस्थान से निकटता थी। बचपन का उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, पर वह विवेकानंद से ही विश्वभर में जाने गए। यह नाम उन्हें राजस्थान से मिला। खेतड़ी के तत्कालीन महाराजा अजीत सिंह ने युवक नरेंद्र नाथ में हीरे की परख की और विश्वधर्म संसद में बोलने के लिए जाने के लिए उन्हें खेतड़ी नरेश ने प्रेरित किया। उन्होंने ही नरेंद्रनाथ दत्त और विविदिशानंद को “विवेकानंद” से अभिहित किया। विश्व धर्म संसद में बोलने के लिए जाने से पहले खेतड़ी नरेश ने ही उन्हें राजस्थानी भगवा साफा, चोगा, कमरबंध भेंट की थी।
स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, कला, साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे। यही नहीं शास्त्रीय संगीत का भी उन्हें गहरा ज्ञान था। जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं था, जिनका मर्म स्वामी विवेकानंद से अछूता था। युवाओं से उनका जुड़ाव था। उन्होंने भारतभर की यात्राएं कर पथ का दिव्य पाथेय पाया। युवा-जोश को जगाया। ये कहा भी गया है “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः” अर्थात उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं न कि केवल मनोरथ करने से।
विश्व धर्म सभा को संबोधित करने संबंधित उनका जीवन का पक्ष भी प्रेरणा देने वाला है। शिकागो पहुंचने पर जितने भी पैसे उनके पास थे वह सब खत्म हो गए थे। कड़ाके की ठंड, गर्म कपड़ों का अभाव और जिस धर्म महासभा ने उन्हें जन-जन तक पहुंचाया, वहां पर प्रवेश के लिए भी उनके पास यथोचित परिचय पत्र नहीं था। सब ओर कठिनाईयां। कोई दूसरा होता तो घबरा जाता। लौट आता। स्वामीजी ने धैर्य नहीं खोया। हालात से जूझते हुए उन्होंने धर्म सभा में प्रवेश पाया और अपने संबोधन से विश्व भर में भारत को गौरवान्वित किया। उन्होंने धर्म संसद में भी कहा कि कोई भी धर्म बंधन नहीं मुक्ति का मार्ग है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।
धर्म संसद में उनका यह कहा आज भी प्रेरणादायक है कि ‘मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।’
हमारे व्यक्तित्व का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण एवं निर्धारक चरित्र है। स्वामीजी ने युवाओं को चरित्र निर्माण की ओर प्रेरित किया। वह कहते हैं प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही दैवीय गुणों से परिपूर्ण होता है। ये गुण सत्य ,निष्ठा, समर्पण, साहस एवं विश्वास से जागृत होते हैं इनके आचरण से व्यक्ति महान एवं चरित्रवान बन सकता है। चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम एवं आत्मत्याग जैसे गुण हों, इनका पालन करने से व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और देश-समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है। हम जानते हैं कि त्रेता युग में रावण के पास श्रीराम की तुलना में ज्ञान, शक्ति, सैन्य शक्ति, धन, संपदा, राज वैभव सब कुछ अधिक था लेकिन श्रीराम के पास सर्वोत्तम चरित्र था, उसी के बल पर रावण का अंत किया। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ लिखा।
युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद जी का यह कहना भी कम प्रेरणाप्रद नहीं है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी मृत्यु है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने कभी ऐसे ही नहीं कहा था कि यदि भारत को कोई जानना चाहता है तो उसे सबसे पहले विवेकानंद को पढ़ना होगा। उनके दिए संदेशों को आत्मसात करना होगा। उनमें सब कुछ सकारात्मक ही सकारात्मक था। नकारात्मक कुछ भी नहीं था।
राजस्थान के युवा भी राजस्थान की जुझारू, कर्मठ, समर्पित, मेहनती, उत्साही और ऊर्जावान युवाशक्ति है और ये आगे बढ़ें स्वयं भी सशक्त बनें तथा राजस्थान को और देश को अग्रणी एवं विकसित बनाने में सहभागी बने। राजस्थान सरकार युवाओं को आगे बढ़ाने में पूरी तरह प्रतिबद्ध है। राजकीय सेवाओं की तैयारी कर रहे युवकों के लिए सरकार ने 5 साल में चार लाख भर्तियों का संकल्प लिया है। साल 2025 के लिए 81,000 से अधिक पदों के लिए भर्ती परीक्षाओं का कैलेंडर राजस्थान में पहली बार जारी किया गया है।
राज्य सरकार द्वारा मुफ़्त कोचिंग के लिए मुख्यमंत्री अनुप्रति योजना, किराया सहायता योजना, राजस्थान वन नेशन वन स्टूडेंट आइडी, युवा नीति-2024, अटल उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री युवा संबल योजना, युवा प्रशिक्षु कार्यक्रम आदि संचालित हैं और इनसे लाभ उठाकर युवा रोज़गार स्वरोजगार एवं उद्यम के क्षेत्र में करियर निर्माण कर न केवल अपना बल्कि अपने परिवार समाज राज्य व देश का विकास कर सकता है। आपका बढ़ता हुआ सामर्थ्य ही विकसित राजस्थान और विकसित भारत का आधार होगा।
अंततः संकल्प शक्ति ही हमें लक्ष्य की ओर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है, साहस जागृत करती है, जुझारू बनाती है और समर्पित करती है। स्वामी जी कहते थे “एक विचार लो उसे अपना ध्येय बनाकर उसके साथ लीन हो जाओ”। उपनिषदों का उनका भाष्य भी लुभाता है। उनका बहुश्रुत वाक्य है, ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ यह कठोपनिषद के मंत्र ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ से लिया हुआ है।
युवाओं को प्रेरित करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने इस मंत्र का उपयोग निरंतर किया। वह हमेशा यह कहते थे कि कार्य करने के लिए बुद्धि, विचार और हृदय की आवश्यकता है। प्रेम से असंभव भी संभव हो जाता है। उन्होंने बार-बार यह कहा कि युवा भूत-भविष्य के सेतु होते हैं। युवाओं को उनका संदेश था, जीर्ण-शीर्ण होकर थोड़ा-थोड़ा करके मरने की बजाय वीर की तरह जीएं। भारतीयता से ओतप्रोत शिकागो में स्वामी विवेकानंद जी का प्रबोधन इसी भाव धारा का प्रवाहन था। उनका कहना था कि अतीत से ही भविष्य बनता है। अतः यथासंभव अतीत की ओर देखो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वल राहों तक पहुंचाने के लिए कार्य करें।
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाने का अर्थ है, स्वामी जी के आदर्शों से युवाओं को सिंचित करना। उन्हें नैतिक तथा बौद्धिक रूप में सक्षम बनाते हुए राष्ट्र विकास के लिए संकल्पित करना। वह भारत के गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले विकसित भारत के लिए युवाओं को तैयार करने के संवाहक थे। आईए, स्वामी विवेकानंद जयंती पर हम उनके आदर्शों से प्रेरणा ले आगे बढें।