कोरोनाकाल में कई रेलसेवाएं बंद कर दी गई, खासतौर से छोटे स्टेशनों के बीच चलने वाली सामान्य गाड़ियां। इनमें से बहुत सी अब भी बंद पड़ी हैं। रेल सेवाओं को पहले की तरह बहाल करने की रेल मंत्रालय की क्या कोई योजना है। सुपर फास्ट चार्ज कब तक जारी रहेगा?
इस प्रश्न के दो भाग हैं। पहली बहाली की बात, जितनी मेल-एक्सप्रेस ट्रेन करीब-करीबी 100 प्रतिशत बहाल कर दी गई हैं। पैसेंजर ट्रेन भी 85 से 90 प्रतिशत बहाल हो गई हैं। ट्रेनों के ठहराव को अलग नजरिए से देखना पड़ेगा। मेंटीनेंस के नजरिए से दुनिया के हर रेल सिस्टम को देखें तो 24 में से 6 घंटे ट्रैक के बहुत बड़े भाग को करीब 300-400 किलोमीटर लंबे हिस्से को खाली रखा जाता है । अगर रोड-हाईवे की बात की जाए तो ट्रक-बस हो या कार, सड़क से नीचे उतर कर भी जा सकते हैं। रेलवे की पटरी स्टील की होती है, इसमें कही डैमेज हो जाए तो ऐसा नहीं हो सकता कि ट्रेन उस हिस्से को बाइपास करके वापस ट्रैक पर आ जाए। ट्रैक की मरम्मत के लिए ऐसी व्यवस्था करना जरूरी है। रोड को कुछ महीनों में एक बार मरम्मत की जरूरत होती है।
स्टील की पटरियों पर इतनी भारी ट्रेन हाई स्पीड से चलती है। यहां रोजाना मरम्मत की जरूरत होती है। इस व्यवस्था के कारण 2019 में एक कठिन व कठोर निर्णय लिया गया। इसका कोरोना से कोई संबंध नहीं है। आइआइटी बॉम्बे को विस्तृत कवायद करने का काम सौंपा गया। जीरो वेस टाइमटेबल के हिसाब से हर जगह 24 घंटे में से कम से कम 4 घंटे जो 6 घंटे तक भी हो सकते हैं। इतना समय मेंटीनेंस के लिए ट्रैक को खाली रखने का निर्णय किया गया। इस कारण बहुत से स्टोपेज हटाने पड़े और कई ट्रेन निरस्त करनी पड़ीं। ट्रैक की मेंटीनेंस नहीं की तो दुर्घटनाएं बढ़ेंगी।
इनकी संख्या भयंकर तरीके से बढ़ेगी। रेल में जो भी यात्री बैठता है बडे़ विश्वास के साथ बैठता है कि पटरियों की, गाड़ियों की, चक्के-पहियों की समय पर मरम्मत हुई होगी। यह सब सोच-समझकर फिर सफर पर निकलता है। उसके भरोसे को कायम रखने के लिए जरूरी है कि चाहे कुछ कठोर निर्णय लेने पड़े, लेकिन ऐसा काम करें कि ट्रेन हमेशा सुरक्षित रहे। यह तकनीकी विषय है, लेकिन दुनिया के हर हिस्से में ऐसा होता है।
देश में रेलवे नेटवर्क की शुरुआत ब्रिटिशराज में हुई। आजादी के बाद की सरकारों ने इसमें कई बदलाव व वृद्धि की। अब सरकार की रेलवे को लेकर क्या दूरगामी सोच है?
लंबे समय तक रेलवे में एक रुटीन तरीके से काम चल रहा था। वर्ष 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेतृत्व संभाला। उन्होंने ट्रांसफॉर्मेशनल चेज लाने की शुरुआत की। 2014 से पहले रेलवे का बजट कुल मिलाकर जो 40-42 हजार करोड़ रुपए था। इतने बड़े देश के इतने बड़े रेलवे नेटवर्क के लिए कम से कम एक लाख करोड़ रुपए साल का निवेश जरूरी है। पटरियां बदलनी हैं, ब्रॉडगेज लाइन को कन्वर्ट करना है। नए स्टेशन बनाने हैं। एक अच्छी आधुनिक तकनीक वाली ट्रेन बनानी है। सेफ्टी के लिए सिस्टम लाना है। निवेश बिना 2014 से पहले कुछ नहीं हो पा रहा था।
मोदी ने आते ही सबसे पहले निवेश बढ़ाया। पहले की सरकारों के समय रेलवे में 40-45 हजार करोड़ रुपए का निवेश होता था, जिसे 90 हजार करोड़ रुपए लेकर गए। अब हर साल 1.37 लाख करोड़ रुपए का निवेश हो रहा है। साधारण ट्रेन में रोजाना ढाई-तीन करोड़ लोग सफर करते हैं। हर नागरिक जन-जन के लिए सबसे पहले स्टेशनों का पुनर्निर्माण, उनको साफ-सुथरा रखना, नई तकनीक की ट्रेन, ज्यादा सुरक्षित व सुविधाजनक ट्रेन, सुरक्षा तंत्र व किस तरह ट्रकों का भार कम करके रेलों की तरफ लाया जाए। उसके लिए ज्यादा से ज्यादा पटरियां, फ्रेट कॉरिडोर। ये सब चीजें अब परिवर्तन में आई। उसका अब परिणाम दिखने लगा है।
रिलायंस जियो और एयरटेल इस साल 5 जी सेवा शुरू कर रहे हैं। लेकिन बीएसएनएल अब जाकर 4 जी लॉन्च कर पाया है। इसके पिछड़ने का क्या कारण है?
बीएसएनएल बहुत अच्छी कंपनी थी लेकिन 2010 में हालत ऐसी कर दी गई कि वह बिगड़ती गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे पैसा दिया। दो माह पहले ही बीएसएनएल को एक लाख 64 हजार करोड़ रुपए का पैकेज दिया है। अब बीएसएनएल का ट्रांसफॉर्म हो रहा है। इससे आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर दिखाई देगी। जनवरी में एंड टू एंड ट्रांस्क्रिप्शन होगा। आने वाले 18 माह में सब कुछ बदल जाएगा।
इंटरव्यू: राजस्थान को अब रेल विकास के लिए हर साल 10 गुना पैसा
देश में हाईवे निर्माण का काम तेजी से चल रहा है, लेकिन डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का काम उतना तेजी से नहीं हो रहा। क्या कारण है? वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर का काम भी धीमा चल रहा है, इसके कब तक चालू होने की उम्मीद है?
आठ साल पहले निर्माण की गति चार किलोमीटर प्रतिदिन थी, अब 12 किलोमीटर प्रतिदिन तक पहुंच गई है। यहां हम रूके नहीं है अभी हमें बहुत तेजी से आगे बढ़ना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काम में बड़ा बदलाव लाए हैं। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर 2007 में शुरू हुआ और 2014 तक लगभग शून्य था। अब 1358 किलोमीटर बन चुका है। गति 2014 के बाद आई है इससे पहले काम करीब-करीब रुका हुआ था।
क्या टेलीकॉम बिल के ड्राफ्ट में वाट्सऐप, टेलीग्राम, जूम, गूगलमीट जैसे कॉलिंग और मैसेजिंग ऐप के लिए लाइसेंस लेने का प्रस्ताव है। तो क्या लाइसेंस फीस भी ली जाएगी। इससे कहीं ये ऐप वीडियो कॉलिंग के लिए पैसे तो चार्ज नहीं करने लगेंगे।
उपभोक्ता के हितों का संरक्षण बहुत जरूरी है। आज साइबर फ्रॉड होते हैं उतने ही ओटीटी प्लेटफार्म के जरिए हो रहे हैं इस पूरे बिल का एकमात्र उद्देश्य ओटीटी यूजर का संरक्षण है। हमारी मंशा लाइसेंसिंग की नहीं है, उपयोगकर्ता के संरक्षण करने की है। सरकार को उपभोक्ता के हितों की चिंता ज्यादा है।
रेल सेवा को आप किस नजरिए से देखते हैं-कॉमर्शियल या लोक कल्याणकारी?
रेलवे बहुत बड़ा सामाजिक उत्तरदायित्व है। रेलवे को व्यावहारिक तौर पर पिरामिड के रूप में देखें। देश का कम आय वाला तबका है, जितने भी लोग हैं उनके लिए रेलवे एक बड़ा साधन है। अमीर तो हवाई यात्रा कर सकता है। उसके लिए हर तरह के साधन होते हैं। गरीबों के लिए सबसे अच्छा साधन रेल है। आज की तारीख में रेलवे हरके यात्री के लिए करीब-करीब 55 फीसदी का डिस्काउंट देता है। 62 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी है। रेलवे के प्रत्येक यात्री को जो सुविधाएं दी जा रही हैं, जो टिकट सस्ता करके रखा है। उसके लिए यह सब्सिडी दी जा रही है। इस कारण यह बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है।
रेलवे के साथ आप सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी हैं। डिजिटल इंडिया चल रहा है, पर डिजिटली सिक्योर इंडिया पर क्या काम हो रहा है? साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। डेटा प्रोटक्शन बिल कब तक आएगा?
डिजिटल दुनिया में रोज परिवर्तन हो रहे हैं नई तकनीक आ रही है। ऐसे में डिजिटल कांप्रिहेंसिव का प्रावधान कर रहे हैं। 1885 का टेलीकॉम बिल है, इसे बदल रहे हैं। कुछ दिनों में डेटा प्रोटक्शन बिल आएगा और उसके बाद डिजिटल इंडिया बिल लाया जाएगा। इन तीन बिल से डिजिटल फ्रेम वर्क पूरा होगा, जिसमें डिजिटल आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा। यूजर प्रोटेक्शन के महत्वपूर्ण तथ्य शामिल हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि साइबर फ्रॉड भी टेलीकॉम बिल के बाद 80 फीसदी तक कम हो जाएंगे।