नहीं बन पाए 80 फीसद गोकुल ग्राम
राष्ट्रीय गोकुल मिशन
देश के सभी दुधारू पशुओं का बनाया जाना था हेल्थ कार्ड9 करोड़ में से 1 करोड़ 31 लाख पशुओं का ही बन सका नकुल स्वास्थ्य पत्र
नहीं बन पाए 80 फीसद गोकुल ग्राम
जयपुर। देसी गायों के संरक्षण, उनकी नस्तों में सुधार, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और पशु उत्पादों की बिक्री सहित कई लक्ष्यों को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा जुलाई 2014 में राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरूआत की गई थी। जिसके तहत गोकुल ग्राम बनाए जाने थे। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे राष्ट्रीय योजना में शामिल करते हुए देशभर के दुधारू पशुओं के संरक्षण का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजूद भ्भी अभी तक 80 फीसदी गोकुल नहीं बन पाए हैं। इस बीच केन्द्र सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया और पुन: वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया।
कृषि मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग की ओर से जारी सूचना के अनुसार नवंबर 2018 तक राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत बनने वाले 20 गोकुल ग्राम में से अब तक केवल 4 गोकुल ग्राम ही बने हैं। ये गोकुल ग्राम वाराणसी, मथुरा, पटियाला और तथावडे (पुणे) में बनाए गए हैं। विभाग ने यह भी बताया कि मिशन के लिए पिछले पांच साल में करीब 835 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं। यही नहीं राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत दो राष्ट्रीय कामधेनू प्रजनन केंद्र भी बनाए जाने थे लेकिन आंध्रप्रदेश के नेल्लोर में अब तक एक केन्द्र ही बन पाया है।
अब बात करे- पशुओं के लिए जारी किए जाने वाले हेल्थ कार्ड की तो…..
31 जुलाई 2018 तक राष्ट्रीय गोकुल मिशन की प्रगति रिपोर्ट बताती है कि देश भर में नौ करोड़ दुधारू पशुओं में से सिर्फ 1.31 करोड़ पशुओं का ही हेल्थ कार्ड यानी नकुल स्वास्थ्य पत्र जारी किया जा सका है।
केन्द्र सरकार की ओर से जारी दिशा निर्देशों के अनुसार राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 2020-21 तक सभी नौ करोड़ दूधारू पशुओं का हेल्थ कार्ड जारी करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन चार साल में 13 से 14 फीसदी दूधारू पशुओं का ही हेल्थ कार्ड जारी हो सका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निर्धारित अवधि तक 100 फीसदी पशुओं को हेल्थ कार्ड दिया जा सकता है?
यही नहीं केन्द्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से सभी पशुओं का रजिस्ट्रेशन कर एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन जुलाई 2018 तक नौ करोड़ में से केवल 1.26 करोड़ पशुओं का ही रजिस्ट्रेशन हुआ।
अब बात करें पशुपालन और डेयरी विभाग की ओर से उपलब्ध सूचना की तो …
पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए देश भर में 20 आईवीएफ लेबोरेटरी/ईटीटी (एम्ब्रायो ट्रांसफर टेक्नॉलजी) बनाए जाने का लक्ष्य था। लेकिन 10 आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) लेबोरेटरी ही बनाई जा सकी है। यानी यह लक्ष्य भी 50 प्रतिशत ही पूरा हुआ है।
गाय निश्चित तौर पर भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन पशुधन को लेकर कोई भी सरकार अब तक ठोस नीति नहीं बना सकी है। यही नहीं गाय को राजनीति का केंद्र बनाकर देश का माहौल जरूर संवेदनशील बनाया जा रहा है। जो गाय करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बन सकती थी, उसे नफरत भरी राजनीति का माध्यम बनाया जाना अच्छे संकेत नहीं हैं।
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