पिता की मौत और न्याय का लंबा इंतजार
12 साल की उम्र में पिता को खो चुके अभिनव तिवाड़ी ने कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 10 साल लगाकर फैसला सुनाया, और फिर हाईकोर्ट ने गुनहगारों को बरी कर दिया। यह आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला कदम है। अभिनव का कहना है कि वह खुद को सिर्फ आतंकवाद का शिकार नहीं मानते, बल्कि न्यायपालिका की भी शिकार मानते हैं। अभिनव ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) दायर की है। उन्होंने बताया कि उनके पिता 13 मई 2008 को चांदपोल हनुमान मंदिर के बाहर प्रसाद बांट रहे थे, जब धमाका हुआ और उनकी जान चली गई। आज भी न्याय की राह में कटीला इंतजार जारी है और गुनहगारों को सजा मिलने की उम्मीदें बनी हुई हैं।
फांसी से भी कड़ी सजा की मांग:
जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष और बम धमाकों के समय चांदपोल बाजार के महामंत्री रहे सुभाष गोयल ने कहा, “धमाकों ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था। हमारी मांग है कि गुनहगारों को फांसी से भी कड़ी सजा दी जाए। अब यह सवाल है कि क्या हमारी मांग पूरी होगी या नहीं।
जिंदा गुनहगार और पीड़ितों का दर्द: सरकारी सहायता से परे
धमाकों के शिकार गोविंद ने बताया कि उनके पिता और वह चांदपोल हनुमान मंदिर के बाहर फूलों की थड़ी लगाते थे। धमाके के दिन, उनके पिता की मौत ने परिवार को पूरी तरह से बदल दिया। सरकारी सहायता के बावजूद, गुनहगार अब भी जिंदा हैं, और न्याय का इंतजार लंबा हो गया है। राज्य सरकार की सुनवाई की पहल: सुप्रीम कोर्ट में याचिका
राज्य सरकार ने भी इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाने का निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट अब हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई करेगा। यह देखना होगा कि न्याय की इस गुहार पर सर्वोच्च अदालत से कब और किस रूप में जवाब मिलेगा।
16 साल का लंबा इंतजार
जयपुर बम धमाकों के पीड़ित वर्तमान में भी न्याय की उम्मीदों में जी रहे हैं। उनके दर्द, संघर्ष और गुनहगारों के खिलाफ सख्त सजा की मांग से यह स्पष्ट है कि न्याय का इंतजार खत्म होने वाला नहीं है। क्या अदालत पीड़ितों को मिलेगा न्याय? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।