यह भी पढ़ें:
Bastar Dussehra 2024: बस्तर दशहरा की प्रमुख रस्म निशा जात्रा देर रात हुई पूरी, बुरी आत्माओं के प्रभाव को रोकने होती है विशेष पूजा दरअसल यहां के ग्रामीणों ने पत्रिका को बताया कि
नक्सल दहशत और नदी के चलते वे पछिले 40 साल से बस्तर दशहरे में शामिल नहीं हो पा रहे थे। जैसे ही यह दशहत खत्म हुई गांव में विकास भी पहुंचा और अब इतने सालों बाद बस्तर दशहरे में वे शामिल हो पाएं हैं।
बारसूर से बाहरभुजा देवी लेकर पहुंचे बलदेव ने बताया कि इस बार आस-पास के करीब 25 गांव के लोग यहां अपने 70 से अधिक देवी देवता के साथ पहुंचे है। इसमें चिटमाता, बारहमंडु, बैंगलुर, समेत अन्य गांव शामिल हैं। वहीं यहां उन्हें ठहरने के लिए राजमहल से सटकर टेंट में जगह मिला है जो समान की बात है। उनका कहना है कि अब उनका
परिवार इस दशहरे में हर साल शामिल होगा।
सुखराम ने बताया कि यहां तक न आने की वजह में एक सबसे बड़ा कारण छिंदनार में पुल का न होना भी था। नदी में इस समय काफी पानी रहता था। ऐसे में लोग जान जोखिम में डालकर देवी देवता के साथ नहीं आ सकते थे। लेकिन जैसे ही नक्सल दहशत खत्म हुई तेजी से इलाके का विकास हुआ और अब तो पुल भी बन गया है।
निमंत्रण कभी मिलता तो कभी नहीं लेकिन ना आ पाने का मलाल था
गांव से मावली माता के साथ पहुंचे पुरूषोत्तम नेगी बताते हैं कि उनके यहां से पिछले 40 साल से कोई भी इस दशहरे में शामिल नहीं हुआ। जबकि पहले उनके पिता के दौर में लोग यहां पहुंचते थे। इसी बीच नक्सल दशहत की वजह से आना बंद हो गया। नहीं आने के बाद भी कई बार यहां से निमंत्रण आता रहता था। लेकिन नहीं आने का मलाल रहता था। लेकिन परिवार के लोगों ने संस्कृति से जैसे तैसे जोड़े रखा था। लेकिन अब इस एतिहासिक दशहरे में शामिल होने का मौका मिल रहा है यह वाकई अद्भुत है।