वन विद्यालय के बड़े पिंजरे में पहाड़ी मैना आर्या की मौत कुछ दिन पहले हो गई थी। जब तक आर्या बड़े पिंजरे में थी तब तक उसे बुलाने के लिए चौकीदार आर्या की पुकार लगाता था। इसे सुनकर सोनू-मोनू भी बोलना सीख रहे थे। वे भी चौकीदार के साथ आर्या कहकर पुकारते थे। पिंजरे के चौकीदार का कहना है कि जिस दिन आर्या की मौत हुई तब से आर्या कहने पर भी वह इस शब्द को नहीं दोहराते। वनपाल डमरुधर कश्यप कहते हैं कि पक्षियों को किसी के होने या नहीं होने का एहसास तत्काल होता है। यह उसी का उदाहरण है। हालांकि दोनों ही उम्र अभी कम है और समय के साथ बातें सीखते-सीखते बोलने लगेंगे।
पहाड़ी मैना की खासियत यह है कि यह हूबहू इंसान की तरह ही आवाज निकालती है। बस्तर में पाई जाने वाली पहाड़ी मैना का जुलाजिकल नाम गैकुला रिलीजिओसा पेनिनसुलारिस है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में पाई जाने वाली मैना से भिन्न है। यह कांगेर घाटी, गंगालूर, बारसूरए बैलाडीला की पहाडिय़ों के अलावा ओडिशा की सीमा पर स्थित गुप्तेश्वर इलाके में ही पाई जाती है।
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