राज परिवार की परंपरा को तोडऩे का अधिकार किसी को नहीं
पत्रिका से विशेष चर्चा में बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव ने बताया कि बस्तर दशहरे के 611 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि बगैर राज परिवार की सामग्री के पूजा कर ली गई। उन्होंने इसे बस्तर की परंपरा से खिलवाड़ बताया। कहा कि बस्तर के आदिवासियों और राज परिवार की परंपरा को तोडऩे का अधिकार किसी को नहीं है। माई दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य हैं। उनके उत्सव की पहली पूजा में ऐसा कृत्य होना गलत है।
माझी-मुखिया हो गए नाराज
बस्तर दशहरा में अधिकांश विधान राज परिवार के माझी-मुखिया करते हैं। इन्हें राज परिवार ने सुबह ११ बजे पूजन का वक्त दिया। सुबह 10.30 बजे सभी जब सिरहासार से होते हुए महाराज के पास पहुंचे तो उन्हें बताया कि महाराज वहां तो पूजा हो चुकी है। यह हमारी परंपरा से खिलवाड़ है। ऐसा कभी नहीं हुआ है। तब राजा ने माझी-मुखिया को शांत करवाया और कहा कि आप लोग तय समय पर जाइए और जैसे हर साल पूजा करते हैं, उसी तरह पूजा करिए तब माझी-मुखिया राजा के आदेश का पालन करते हुए सिरहासार पहुंचे और पहले की गई पूजा की सामग्री हटाकर राजा के द्वारा स्पर्श की गई सामग्री से परंपरा के अनुरूप पूजा की।
इससे पहले मंत्री, सांसद और विधायक पूजा करके जा चुके थे
प्रशासन का समय तय था जिन्होंने पूजा की उन्हें सोचना था माझी मुखिया जब मेरे पास यह जानकारी लेकर आए कि पूजा हो चुकी है तो मैंने कलक्टर से बात की उन्होंने कहा कि आप इस संबंध में तहसीलदार से बात कर लें। तहसीलदार ने कहा कि समय 11 बजे कहा ही है। तब ही पूजा होगी। जबकि प्रशासन के तय समय को भी ताक पर रखकर सुबह 9.30 बजे पूजा कर दी गई।
इस बारे में तो जिन्होंने पूजा की उन्हें सोचना चाहिए
माई दंतेश्वरी से जुड़े विधान के साथ इस तरह का खिलवाड़ किसी के लिए भी उचित नहीं है। कमलचंद भंजदेव, बस्तर महाराजा आगे के कार्यक्रमों में समन्वय बनाएंगे पाट जात्रा पूजन में समन्वय के अभाव के चलते ऐसा कुछ हो गया है। कहां और किस स्तर पर चूक हुई, इसकी हम समीक्षा करेंगे। आगे के कार्यक्रमों में समन्वय के साथ काम किया जाएगा। बस्तर राज परिवार और आदिवासियों की आस्था के साथ किसी भी स्तर पर चूक बर्दाश्त नहीं की जाएगी।