कई बार बदला स्वरूप
मैया बड़ी खेरमाई कलचुरी काल में राजाओं की कुलदेवी रही हैं। शाक्य व शैव सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए मंदिर प्राचीन काल से आस्था का केंद्र रहा है। पूर्व में यहां देवी के रूप में शिला की पूजा होती थी। 1993 में मंदिर ट्रस्ट ने देवी के नौ स्वरूपों की प्रतिमा की स्थापना की। इससे पूर्व 1936 में भी मंदिर परिसर को व्यवस्थित स्वरूप दिया गया था।
ऐसा है आंतरिक स्वरूप
खेरमाई के गर्भगृह में स्थापित माता की प्रतिमा के बायीं ओर संकटमोचन दक्षिणमुखी हनुमान और दायीं ओर तांत्रिक शक्ति के प्रतीक भैरव की प्रस्तर मूर्ति स्थित है। श्रद्धालु श्रद्धा-भाव के साथ मंदिर के परकोटे की परिक्रमा करते हैं। यहां देवी दुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कृष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के स्वरूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से पूजन-अनुष्ठान करने पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर के गर्भगृह के सामने एक बड़ा कक्ष है। इससे जुड़ा हुआ एक हवन कक्ष है। परकोटे के दाहिने भाग में दूल्हादेव और बाएं भाग में ओरछा राज के पूर्व दीवान हरदौल की मूर्ति की शृंखला है। मंदिर में सिद्धिदाता गणेश, संकटमोचन हनुमान, कालीमाई, भैरव बाबा, सिंहवाहिनी दुर्गा, चौसठ योगिनी मंदिर स्थित है।
सोनपुरा परिवार के कारीगरों ने किया निर्माण
मंदिर को भारतीय स्थापत्य कला के अनुसार भव्य स्वरूप दिया जा रहा है। तीन साल पहले निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जो पूर्णता की ओर है। मंदिर समिति के शरद अग्रवाल ने बताया, गुजरात के सोनपुरा परिवार के कारीगरों ने मंदिर को आकर्षक स्वरूप दिया है। यह वही परिवार है, जिसने देशभर में शिलाओं के माध्यम से मंदिरों का निर्माण किया है।