पढ़ें पूरा मामला, पूर्व में क्या थे आदेश
बता दें कि दुष्कर्म पीड़िता किशोरी ने गर्भपात की अनुमति के लिए विशेष न्यायाधीश सागर के समक्ष आवेदन दायर किया था। विशेष न्यायाधीश ने पीड़िता के इस आवेदन को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए याचिका के रूप में इस पर सुनवाई के आदेश जारी किए थे। जिसके बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पीड़ित की मेडिकल रिपोर्ट हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल को प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया था कि पीड़िता की गर्भावस्था 32 माह 6 दिन की है। मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद 27 दिसंबर 2024 को समय पूर्व पीड़िता के प्रसव और गर्भपात की अनुमति प्रदान की थी। एकलपीठ ने इस मामले पर आदेश जारी करते हुए कहा था कि बच्चा जिंदा पैदा होता है तो, उसकी देखभाल सरकार के द्वारा की जाएगी।
पीड़िता ने बच्चे की अभिरक्षा पाने हाईकोर्ट में दिया था आवेदन
दुष्कर्म पीड़िता ने 1 जनवरी 2025 को अस्पताल में एक जीवित लड़के को जन्म दिया था। इसके बाद बच्चे की अभिरक्षा पाने के लिए नाबालिग मां और उसके माता-पिता ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। इस आवेदन में पीड़िता और उसके परिवार ने अपील की थी कि वह बच्चे का पालन-पोषण खुद करना चाहते हैं। माता-पिता की तरफ से कहा गया था कि वह बेटी और उसके बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और हरसंभव पोषण और देखभाल प्रदान करने का वचन देते हैं। उन्होंने इस आवेदन में बच्चे की कस्टडी उसकी मां को दिए जाने की अपील की थी, ताकि नवजात बच्चे को उचित प्राकृतिक स्तनपान कराया जा सके। लेकिन उन्हें वर्तमान में इसकी अनुमति नहीं दी जा रही है।
जस्टिस एके सिंह ने किया आदेश जारी
शनिवार 11 जनवरी को हाईकोर्ट जस्टिस एके सिंह ने विशेष एकलपीठ में याचिका की सुनवाई के दौरान वीडियो कॉल के माध्यम से पीड़िता और उसकी मां के साथ ही उपस्थित चिकित्सक से भी संपर्क किया। अभियोक्ता और उसकी मां ने बच्चे की अभिरक्षा अपने पास रखने और उसका पालन-पोषण करने की इच्छा जताई है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवजात शिशु की देखभाल करने के लिए मां ही दुनिया में सबसे अच्छी है। यदि दुष्कर्म पीड़ता अपने बच्चे की देखभाल खुद करना चाहती है, तो यह मां के साथ ही बच्चे के हित में भी है। इस मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए एकलपीठ ने नवजात बच्चे की अभिरक्षा नाबालिग मां और उनके माता-पिता को देने का आदेश जारी कर दिया।
राज्य सरकार को करने होंगे ये काम
एकलपीठ ने बच्चे की अभिरक्षा मां और उसके परिवार को सौंपते हुए राज्य सरकार के लिए भी निर्देश जारी किए हैं। हाईकोर्ट का कहना है कि बच्चे को मां के दूध का प्राकृतिक स्तनपान कराने की तत्काल व्यवस्था की जाए, जो नवजात शिशु के लिए अमृत समान है। वहीं राज्य सरकार अभियोक्ता और उसके माता-पिता को इस संबंध में कानून के अनुसार जहां भी और जब भी आवश्यक हो, सहायता प्रदान करेगी। नवजात शिशु और उसकी नाबालिग मां के सभी चिकित्सा व्यय राज्य सरकार को करने होंगे।