ठंडे दही-बताशे किए अर्पित
पूजा के बाद माता शीतला को भोग लगाया गया। बुधवार को मां को चढ़ाया गया भोग अलग ही था। इस दिन विशेष रूप से बसौरा (बासी भोजन) व ठंडे दही-बताशे का भोग लगाया गया। सप्तमी तिथि पर मंगलवार की रात को यह भोजन तैयार किया गया था। शाम को मंदिर में महाआरती व भंडारे का आयोजन किया गया।
नहीं होती बीमारी, विपदाओं से मुक्ति
मंदिर के पुजारी रिशु तिवारी ने बताया कि भगवान भोलेनाथ ने शीतलाष्टक की रचना की थी। माता शीतला की विधि पूर्वक उपासना करने से भक्तों को प्राकृतिक विपदाओं से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से बीमारियां जैसे चैचक, कुष्ठ रोग, ज्वर, नेत्र रोग आदि से मुक्ति मिलती है। माता की कृपा से जीवन में सुख शांति व वैभव रहता है। शीतलाष्टमी को पूजन में दीप, धूप, अगरबत्ती नहीं जलाई जातीं।
स्वच्छता का दिया संदेश
मंदिर परिवार के अध्यक्ष डॉ. रमाकांत रावन ने बताया कि सप्तमी की रात भोग बनाया जाता है। अष्टमी को पूजन के बाद माता शीतला को यह बासी भोजन अर्पित किया जाता है। इसके जरिए यह संदेश होता है कि गर्मी ऋतु का आगाज हो गया है और लोग बासी भोजन खाने से बचें। माता के हाथों में झाडू और सूपा स्वच्छता का संदेश देते हैं। जिससे सभी स्वस्थ रहें।