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आचार्य सत्येंद्र स्वरुप शास्त्री बताते हैं कि विष्णु पुराण के अनुसार गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। यहां पिंडदान करने से पूर्वज स्वर्ग चले जाते हैं। स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता।
ये है गया का महत्व
आचार्य विनोद शास्त्री बताते हैं कि पुराणों के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। उसने यह वर मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। उसके दर्शन से सभी पाप मुक्त हो जाएं। ब्रम्हाजी से वर प्राप्त होने के बाद लोग पाप करने के बाद भी गयासुर के दर्शन करके स्वर्ग पहुंच जाते थे। जिससे स्वर्ग पहुंचने वालों की संख्या तेजी से बढऩे लगी। इस समस्या से बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया। इससे प्रसन्न देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि इस स्थान पर जो भी तर्पण करने पहुंचेगा उसे मुक्ति मिलेगी।
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विदेशों से आते हैं पिंडदान करने
पितरों के तर्पण के लिए विश्व में मात्र गया जी का नाम ही पुराणों में आता है। इससे यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग पिंडदान करने पहुंचते हैं। देश के अलावा विदेशों से भी लोग यहां पिंडदान के लिए पहुंचते हैं।
यहां करते हैं पिंडदान
– बद्रीनाथ: बद्रीनाथ जहां ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है।
– हरिद्वार: यहां नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
– गया: यहां साल में एक बार 16 दिन के लिए पितृ-पक्ष मेला लगता है। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजोंं को मुक्ति मिलती है।