जीवंत पाठशाला है नर्मदा
वॉटर वुमन शिप्रा पाठक ने बताया कि नर्मदा को वैसे तो लोग धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ही देखते हैं, लेकिन इसे करीब से जानने वाले विज्ञान और जल धाराओं के संघर्ष को जोडकऱ जीवंत पाठशाला के रूप में जानते हैं। मैं जब नर्मदा की परिक्रमा करने निकली थी तो धार्मिक दृष्टि थी, लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ती गई, वैसे वैसे पाया कि ये केवल पूजन के लिए नहीं है, बल्कि इसे समझने और शोध करने के लिए भी लोग यहां आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से जहां ये मनमोहनी लगती है, वहीं खतरनाक परिस्थितियों में भी अपने वेग को शांत रखकर आगे बढऩ़े के लिए ये मन को शांत रखने का संदेश भी देती है। अमरकंटक की नर्मदा भरूच तक अपने साथ कई रंग, संस्कृति और संस्कारों की शिक्षा भी देती है। शिप्रा पाठक ने 108 दिनों में अकेले नर्मदा परिक्रमा की है। जिसके बाद उन्होंने स्वयं को उन्हें समर्पित कर दिया। साथ ही परिक्रमा के पश्चात लोगों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करने और 1 करोड़ पौधरोपण का संकल्प लेकर अब तक 6 लाख से ज्यादा पौधे लगा दिए हैं, यह अभियान निरंतर जारी है।
धार्मिक महत्व सबसे ज्यादा
नर्मदा महाआरती के संस्थापक ओंकार दुबे का मानना है नर्मदा परिक्रमा करने वालों में सबसे ज्यादा उन्हें धार्मिक दृष्टि से देखने वालों की है। जो उन्हें चिरकुंवारी कन्या के रूप में देखते हैं। परिक्रमावासियों का जब भी नर्मदा ग्वारीघाट आना होता है, वे यहां के तटों का महत्व जानकर उसी में खो जाते हैं। कार्तिक माह से शुरू होने वाली नर्मदा परिक्रमा में हजारों की संख्या में लोग नंगे पैर चलकर माता के विविध रूपों के दर्शन कर रहे हैं। नर्मदा महाआरती में उन्हें निर्मल और स्वच्छ रखने की शपथ पिछले एक दशक से जारी है।
हर महीने होती है नर्मदा परिक्रमा
पंचकोसी परिक्रमा के संयोजक सुधीर अग्रवाल ने बताया भेड़ाघाट स्थित हरे कृष्णा आश्रम से प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि पर नर्मदा पंचकोसी परिक्रमा आयोजित की जाती है। बारिश के दौरान चातुर्मास के दौरान आश्रम में नर्मदा कलश की परिक्रमा होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर सबसे बड़ी परिक्रमा होती है, जिसमें कई हजार श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस बार 8 नवंबर को परिक्रमा निकलेगी।
नर्मदे हर…शहर की पहचान
संस्कारधानी जबलपुर की पहचान नर्मदा से है। छोटे बच्चों से लेकर युवाओं व बुजुर्गों तक नर्मदे हर का संबोधन सुना जा सकता है। प्रतिदिन केवल दर्शनों के लिए हजारों की संख्या में लोग नर्मदा तटों पहुंचते हैं। कुछ धार्मिक दृष्टि से पूजन वंदन करते हैं तो कुछ ध्यान लगाने के लिए पहुंचते हैं। नर्मदा को मानने वाले जितनी संख्या में जबलपुर में हैं, उतने शायद ही कहीं देखने नहीं मिलते हैं।