इस निर्णय ने सूचना आयोग और लोक सूचना अधिकारी के निर्देश को निरस्त कर दिया है। मामले में सूचना आयोग और लोक सूचना अधिकारी दोनों ने ही आदेश दिया था कि सरकारी अधिकारियों की सैलरी की जानकारी गोपनीय मानी जाएगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को एक महीने में सूचना उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा, सरकारी अधिकारियों के वेतन की जानकारी का सार्वजनिक महत्व है, इसलिए इसे गोपनीय नहीं माना जा सकता।
अतिथि शिक्षकों को मिलेगी 10 साल की छूट, इन लोगों को नहीं मिलेगा लाभ ! नहीं दी गई थी जानकारी
याचिकाकर्ता एमएम शर्मा ने छिंदवाड़ा वन परिक्षेत्र में कार्यरत दो कर्मचारियों के वेतन भुगतान के संबंध में जानकारी मांगी थी। लोक सूचना आयोग ने उन्हें जानकरी देने से इनकार कर दिया। इसके पीछे उन्होंने कारण बताया कि यह जानकारी निजी और तृतीय पक्ष की जानकारी है इसीलिए यह सूचना उन्हें उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। लोक सूचना आयोग का कहना था कि संबंधित कर्मचारियों से उनकी सहमति मांगी गई थी, लेकिन उनका उत्तर न मिलने पर जानकारी गोपनीय होने के कारण उपलब्ध नहीं कराई जा सकती।
डस्टबिन में नोट की गड्डी बांधने वाली झल्ली से समझ जाते थे ATM में कितना पैसा, जहां रकम ज्यादा वहीं लूट याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता एमएम शर्मा की ओर से कोर्ट में बताया कि सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन की जानकारी को सार्वजनिक करना आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा-4 के तहत अनिवार्य है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि लोक सेवकों के वेतन की जानकारी को धारा 8 (1)(J) का हवाला देकर व्यक्तिगत या तृतीय पक्ष की सूचना बताकर छिपाना आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों और पारदर्शिता के सिद्धांतों के विपरीत है। इसे कोर्ट ने सही माना और आयोग को आदेश किया एक महीने के अंदर याचिकाकर्ता को जानकारी उपलब्ध कराई जाए।