व्यवस्थित मार्ग का अभाव
सरकार व्यवस्थित परिक्रमा मार्ग या पथ आज तक नहीं बना पाईं हैं। ऐसे में परिक्रमा करने वालों को आज भी खेतों, जंगलों, ऊबड़-खाबड़ पहाडिय़ों व पगडंडियों से होकर ही गुजरना पड़ रहा है। खाने पीने व ठहरने के उचित इंतजाम न होने से नर्मदा तटों पर रहने वाले ही परिक्रमावासियों के लिए दशकों से सारी व्यवस्थाएं नि:स्वार्थ भाव से जुटा रहे हैं। सरकारी संस्थाएं भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही हैं।
फैक्ट फाइल
3600 किमी लंबा है नर्मदा का परिक्रमा मार्ग
08 महीने परिक्रमा, चातुर्मास के चार माह बंद रहती है।
120 दिन परिक्रमा पूरी करने में लगते हैं।
दिशा ‘सूचक’ भी नहीं
नर्मदा परिक्रमा करने वालों का मानना है कि नर्मदा के किनारों को प्राकृतिक रूप में ही रहने देना चाहिए, पक्के निर्माण न कराकर व्यवस्थित कच्चे मार्ग बनाए जाएं, जंगलों के बीच से होकर गुजरने वाले रास्तों पर दिशा ‘सूचक’ व इमरजेंसी के लिए नंबर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इससे परिक्रमा करने दूर दूसरे प्रदेशों से आने वालों को परेशानी नहीं होगी।
आश्रमों, समाजसेवियों का सहारा
मां नर्मदा की परिक्रमा सदियों से हजारों लोग करते आ रहे हैं। लेकिन आज तक इस पूरे परिक्रमा मार्ग में सरकारों द्वारा कोई सुविधा या मदद उपलब्ध नहीं कराई गई है। पूरी परिक्रमा लोग जनसहयोग व जंगल एवं गांव, आश्रमों के भरोसे ही कर रहे हैं। परिक्रमावासियों के ठहरने का इंतजाम सदियों से आश्रमों, समाजसेवियों, नर्मदा परिक्रमा मार्ग में रहने वाले गृहस्थों के भरोसे से ही चल रही है। कई बार विपरीत परिस्थियों में खासकर महिलाओं को परेशानी का सामना उठाना पड़ता है। स्वास्थ्य संबंधी मदद के लिए भी ग्रामीण या अन्य समाजसेवी ही आगे आते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि पूरे परिक्रमा मार्ग में महिलाओं को सुरक्षा संबंधी परेशानियां नहीं हैं।
कपड़ा, दवाइयां मिलना मुश्किल
नर्मदा परिक्रमा का मार्ग लंबा और दुष्कर होने के कारण पूरे मार्ग के लिए परिक्रमा वासियों को व्यवस्था कर के चलना संभव नहीं होता। पूरे परिक्रमा मार्ग पर बने विभिन्न आश्रमों, सेवकों के द्वारा परिक्रमावासियों के ठहरने व भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है। ये सभी जन सहयोग से परिक्रमा करने वालों को भोजन, कपड़ा, दवाइयां उपलब्ध कराते हैं।ऐसे में उन्हें लोगों की दया व दान पर ही परिक्रमा पूरी करनी होती है।
परिक्रमा पथ पर भटकाव के रास्ते
परिक्रमा के दौरान दो रास्ते मिलते हैं। इनमें पहला जो मां नर्मदा के सामानांतर चलता है तट मार्ग और दूसरा गांव या पगडंडियों से होकर गुजरता है। तट मार्ग कबीर चबूतरा में ही भटकाव मिल जाता है। यह कठिन मार्ग में शामिल है। इन मार्गों पर साधू सन्यासी चलते हैं, वहीं गृहस्थ व अन्य लोग गांव के रास्ते से चलना पसंद करते हैं। अमरकंटक से भरूच तक दोनों छोर पर कई भटकाव के रास्ते हैं। ये सभी सदियों से प्राकृतिक मार्ग के रूप में जाने जाते हैं। कई लोगों ने दिशा निर्देशक लगाए हैं ताकि परिक्रमावासी भटकने से बच जाएं।
पिछले 20 सालों से नर्मदा परिक्रमावासियों के लिए मार्गदर्शिका बनाती हूं साथ ही अन्न क्षेत्र के माध्यम से आश्रमों में सेवा देती हूंं। स्वयं व जनसहयोग के माध्यम से सभी सुविधाएं उपलब्ध करा रही हूं। अभी कुछ आश्रमों में सोलर लाइट लगवानेे का काम किया जा रहा है। परिक्रमावासियों को ठहराने में आसानी हो।
– सीमा वीरेन्द्र चौधरी, नर्मदा सेवक, जबलपुर
पूरे नर्मदा परिक्षेत्र में सरकारों को गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है। क्योंकि हर साल नर्मदा परिक्रमावासियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसमें गुजरात सरकार ने पहल कर दी है।
– स्वामी गिरिशानंद सरस्वती महाराज, संस्थापक साकेत धाम