रिपोर्ट में की थी सिफारिश
जुलाई में विधि आयोग ने केंद्र सरकार को भेजी एक रिपोर्ट में जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम में संशोधन कर विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करने की सिफारिश की थी। इसमें कहा गया था कि कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान सहित कई राज्य पहले से ही विवाह पंजीकरण को अनिवार्य कर चुके हैं। लेकिन, केंद्रीय स्तर पर एकीकृत कानून न होने से ‘वैवाहिक धोखाधड़ी’ के मामलों की जांच करना मुश्किल हो जाता है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में भी एनआरआई के विवाह विवादों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
वैवाहिक संबंध प्रमाणित करना मुश्किल
विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि वैवाहिक पंजीकरण नहीं होने से महिलाएं व बच्चे सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। खासकर, रिलेशन व संपत्ति विवाद की स्थिति में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को उठानी होती है। बिना वैवाहिक पंजीकरण के कई बार महिलाओं के लिए अपना वैवाहिक संबंध प्रमाणित करना मुश्किल हो जाता है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक केस के संदर्भ में इस बात पर चिंता भी जताई थी।
दिया जा रहा है अंतिम रूप
हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ न्याययिक अधिकारी के अनुसार देश में विवाह संबंधी धोखाधड़ी के मामलों को नियंत्रित करने व उनकी जांच के लिए विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करने की तैयारी कर रही है। हालांकि, कई राज्यों ने अपने स्तर पर विवाह पंजीकरण को अनिवार्य कर रखा है, लेकिन केंद्रीय स्तर पर कानूनी ढांचा न होने से इस तरह की धोखाधड़ी पर लगाम लगाना मुश्किल होता है। कानून मंत्रालय इसके लिए आवश्यक संशोधनों को अंतिम रूप दे
रहा है।