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जबलपुर

दुश्मन के ठिकानों को पल भर में तबाह कर सकते हैं इस शहर में बने हथियार

करगिल युद्ध में जबलपुर ने निभाई बड़ी भूमिका, 20 साल बाद ताकत में भारी इजाफा

जबलपुरJul 26, 2019 / 01:26 am

shyam bihari

दुश्मन के ठिकानों को पल भर में तबाह कर सकते हैं इस शहर में बने हथियार

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जबलपुर। करगिल युद्ध में शहर के योगदान को देश कभी नहीं भुला सकता। यहां की आयुध निर्माणियों ऑर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया, वीकल फैक्ट्री जबलपुर, गन कैरिज फैक्ट्री और ग्रे आयरन फाउंड्री की करगिल युद्ध में बड़ी भूमिका रही। निर्माणियों में बने कई प्रकार के हथियार और वाहन सेना को सप्लाई किए गए थे। इनमें से कई हथियार ऐसे हैं, जिन्हें अपग्रेड कर लिया गया है। इनकी ताकत इतनी बढ़ गई है कि वे दुश्मन के गढ़ में तबाही मचा सकते हैं। मोर्चे पर खड़ी सेना में भी जबलपुर से प्रशिक्षण प्राप्त सैनिकों ने अपनी जान गंवाकर देश की सीमाओं को सुरक्षित किया। इसमें दि ग्रेनेडियर्स रेजीमेंटल सेंटर की अहम भूमिका रही।
देश की सेना ने वर्ष 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर की अलग-अलग चोटियों से भगाया था। आयुध निर्माणी खमरिया के कर्मचारियों ने दिन-रात मेहनत कर 84 एमएम, एरियल और क्लस्टर बमों का उत्पादन किया। वीएफजे में बने स्टायिलन, एलपीटीए और शक्तिमान वाहनों से सेना के जवानों को अलग-अलग स्थानों पर पहुंचाया गया। जीसीएफ में असेम्बल की गई बोफोर्स तोप ने भी तहलका मचाया। अब स्थितियां काफी बदल गई हैं। यहां पहले की तुलना में ज्यादा आधुनिक हथियार तैयार हो रहे हैं।
इन हथियारों की दुनियाभर में गूंज
धनुष तोप : बोफोर्स तोप का स्वदेशी वर्जन 155 एमएम 45 कैलीबर धनुष तोप दुनिया की सबसे बड़ी तोपों में शामिल है। जीसीएफ में इसे तैयार कर सेना को सौंपा गया है। कुछ समय पूर्व आधुनिक तकनीक वाली छह धनुष तोप सेना को दी गई हैं। सेना के पास मौजूद सभी बोफोर्स तोपों की मारक क्षमता 38 से 40 किमी की जाएगी।
शारंग तोप : जीसीएफ और वीएफजे में 130 एमएम गन को 155 एमएम 45 कैलीबर में अपग्रेड किया जा रहा है। अपग्रेडेशन के बाद इससे 25-30 किमी दूरी के बीच निशाना साधा जा सकेगा। जल्द ही शारंग तोप सेना को सौंपी जाएगी।
एडवांस स्टालियन : करगिल युद्ध के दौरान सेना के परिवहन के प्रमुख वहन स्टालियन को भी अपग्रेड किया जाएगा। वीकल फैक्ट्री जबलपुर अब एडवांस स्टालियन बनाना चाहती है। इसकी क्षमता सामान्य स्टालियन से ज्यादा होगी।
250 किग्रा बम : एयरफोर्स के लिए ओएफके में लम्बे समय से 110-120 किग्रा एरियल बम का उत्पादन हो रहा है। इसमें प्री-फ्रेग बम भी शामिल है। अब 250 किग्रा प्री-फ्रेग बम का उत्पादन हो रहा है। इसमें भारी बारूद के साथ 30 हजार से स्टील बॉल होती है। इसके जरिए, पुल, इमारत, रन-वे आदि को ध्वस्त किया जा सकता है।
751 टैंक बम : स्वीडन के सहयोग से ओएफके में 751 टैंक बम बनाया जा रहा है। 84 एमएम बम शृंखला के नए वेरियंट के रूप में इसका उत्पादन हो रहा है। यह बम 551 के आगे की शृंखला है। इसमें द दो हेड का इस्तेमाल किया गया है। यह टैंक की भीतरी सतह तक मार कर सकता है।
कुछ याद इन्हें भी कर लो
कैप्टन विक्रम बत्रा : परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 13 जम्मू एंड कश्मीर रायफल इन्फेंट्री बटायलियन में थे। 24 वर्षीय कैप्टन बत्रा ने डेल्टा कम्पनी के साथ करगिल युद्ध में दुश्मनों को खदेडऩे के लिए अभियान छेड़ा। लड़ाई के दौरान जूनियर ऑफीसर लेफ्टिनेंट नवीन को दुश्मन का हैंड ग्रेनेड लगा। उन्हें बचाने के लिए एक सूबेदार जाने लगे। कैप्टन बत्रा ने कहा- ‘तू बाल-बच्चेदार है।Ó कैप्टन बत्रा सूबेदार को धक्का देकर बंकर से बाहर निकले। इसी दौरान उनकी कमर में गे्रनेड लगा। फिर भी वे रुके नहीं। आमने-सामने की लड़ाई में उन्होंने कई घुसपैठियों को मार गिराया। सात जुलाई को सीने में गोली लगने से वे शहीद हो गए। पूर्व में जबलपुर में रहे उनके माता-पिता आज भी उनकी कुर्बानी पर गर्व महसूस करते हैं।
अश्विनी कुमार काछी 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में खुड़ावल सिहोरा निवासी अश्विनी कुमार काछी शहीद हो गए। सीआरपीएफ के इस जवान के साथ करीब 42 सैनिक भी शहीद हुए थे। आंतकियों ने आत्मघाती हमले में जवानों की बस को बारूद से भरी कार को टकराकर उड़ा दिया था। इस घटना के बाद शहर में मातम छा गया। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री सिहोरा पहुंचे थे। शहर के कई अन्य जवानों ने भी करगिल युद्ध के अलावा अलग-अलग मौकों पर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान गंवाई है।
गजब का जज्बा
शहर के इस जांबाज ने करगिल की लड़ाई तो नहीं लड़ी, लेकिन उससे प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती हुए। 23 वर्षीय नितेश अक्टूबर 2014 में मराठा रेजीमेंट में भर्ती हुए। जनवरी 2016 में उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में हुई। 22 अप्रैल 2016 की रात 11 जवानों के साथ गश्त के दौरान छह आतंकवादियों ने उन पर हमला किया। हमले में सात जवान शहीद हो गए। सिपाही नितेश घायल साथी को सुरक्षित जगह पर ले जा रहे थे, तभी उनकी पीठ और गर्दन पर चार गोलियां लगीं। इससे पहले वे दो आतंकवादियों को ढेर कर चुके थे। डेढ़ साल के इलाज के बाद उन्हें दूसरा जीवन मिला।

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