आपको बता दें, प्रधानमंत्री के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी करने तथा अल्पसंख्यकों को धर्म और जाति के नाम पर उकसाने के आरोप में कांग्रेस नेता राजा पटेरिया के खिलाफ पवई थाने में शिकायत कराई गई थी। मामला पीएम मोदी से जुड़ा होने पर पुलिस ने इसे गंभीरता से लेते हुए 13 दिसंबर को राजा पटेरिया को गिरफ्तार कर लिया था। पवई कोर्ट तथा ग्वालियर जिले की विशेष (एमपी-एमएलए) कोर्ट से उनकी जमानत खारिज होने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जमानत की गुहार लगाई। हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में दायर उनकी जमानत याचिका को सुनवाई के लिए जबलपुर मुख्य पीठ में स्थानांतरित कर दिया गया था।
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पटेरिया के वकील की दलीलें
पटेरिया के वकील ने याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ से कहा कि, आवेदक के ऊपर जितनी भी दाराएं थोपी गईं हैं उनका कोई तथ्य नहीं हैं। राजनीतिक दुर्भावना के कारण उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया है। शिकायतकर्ता की ओर से जो सीडी पेश की गई, उसमें छेड़छाड़ हुई है। आवेदक ने जो वक्तव्य दिया था, उसी में मंतव्य भी स्पष्ट कर दिया था। उनके बयान को तोड़ – मरोड़ कर पेश किया गया था। वहीं, शासन की ओर से जमानत अर्जी का विरोध किया गया। एकलपीठ ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
इसके बाद हाईकोर्ट ने इसपर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, जमानत आवेदन के दौरान भाषण की सीडी का परीक्षण और उसकी शुध्दता पर विचार करना उचित नहीं होगा। भाषण के दौरान ऐसे शब्द प्रयोग करना, जो विचलित कर सकते हैं, आजकल फैशन बने हुए हैं। ऐसी प्रथा न सिर्फ छवि खराब कर रही है, बल्कि समाज में अपराध बढ़ने का कारण भी बन रही है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे उच्च पदों पर बैठे नेताओं की छवि खराब करने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए जनता भी नेता से अभद्र भाषा के इस्तेमाल की उम्मीद नहीं करती। इसलिए न्यायिक हिरासत के दौरान जमानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।
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