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जबलपुर

राजस्व की गलती से लोग झेल रहे थे सीलिंग का दर्द, अब मिलेगी राहत

कलेक्टर ने जारी किया आदेश, एक जुलाई से प्रविष्टी प्रभावहीन

जबलपुरMar 06, 2024 / 01:11 pm

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जबलपुर. जिले में नगरीय अतिशेष घोषित शासकीय भूमि को छोड़कर शेष राजस्व खसरों में दर्ज “सीलिंग से प्रभावित” या “शहरी सीलिंग भूमि” की प्रविष्टि एक जुलाई 2024 से प्रभावहीन हो जाएगी। यह बड़ा निर्णय कलेक्टर दीपक सक्सेना की अध्यक्षता में सोमवार को हुई सीलिंग भूमि की त्रुटि सुधार संबंधी बैठक में लिया गया। इसका लाभ जेडीए सहित दूसरी वैध कॉलोनियों को मिलेगा। पत्रिका ने इस गड़बड़ी के खिलाफ लंबा अभियान चलाया। ऐसे में यहां रहने वाले लोगों को बड़ी राहत मिली है।

खसरों में दर्ज प्रविष्टी के प्रभावहीन होने के साथ ही इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के लिए नवीनीकरण, फ्री-होल्ड और नामांतरण तथा बटवारा का काम आसान हो जाएगा। अकेले जेडीए की ही 22 कॉलोनियां इससे प्रभावित थीं। इनमें कुछ में एसडीएम ने राहत दे दी है। कलेक्टर सक्सेना ने साफ कहा कि प्राथमिक तौर पर निजी भूमि स्वामी की कोई गलती नहीं है। यह राजस्व विभाग की जिम्मेदारी है कि शासकीय भूमियों से संबंधित भू अभिलेखों को अपडेट और शुद्ध रखें। शासकीय भूमि से संबंधित चंद प्रकरणों में हेरा-फेरी की आशंका के कारण हजारों निजी भूमि स्वामियों को परेशान नहीं किया जा सकता है।

140 गांवों के 40 हजार लोगों को राहत

जिला प्रशासन का यह निर्णय 140 गांवों के 30 से 40 हजार लोगों को राहत प्रदान करेगा। इसमें जबलपुर विकास प्राधिकरण की 22 कॉलोनियां भी शामिल हैं। इनमें रह रहे 25 हजार परिवार निवासरत हैं। इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों ने बड़ी राशि खर्च कर अपना आशियाना बनाया था, मगर राजस्व विभाग की गलती के कारण भूखंडों के खसरों में सीलिंग दर्ज हो गया था। ऐसे में लोग नामांतरण करवा पा रहे थे , जमीन और मकान का बटवारा हो पा रहा था। ऐसे में घरों में विवाद भी बढ़ रहे थे।

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अलग-अलग कॉलम में दर्ज है प्रविष्टी

सीलिंग भूमि की समीक्षा के दौरान पाया गया कि जिले में स्थित विभिन्न भूमियों के राजस्व अभिलेख खसरे के कालम तीन और पांच में निजी भूमिस्वामियों के नाम दर्ज होने के साथ-साथ कैफियत कालम नंबर 12 में “सीलिंग से प्रभावित” या “शहरी सीलिंग भूमि” की प्रविष्टि दर्ज है। यह प्रविष्टि जबलपुर विकास प्राधिकरण के स्वामित्व की विभिन्न ग्राम की भूमियां के कई खसरा नंबर भी दर्ज है और वैध कालोनियों के खसरा नंबर भी इससे प्रभावित हैं। ऐसे में निजी भूमिस्वामियों को विक्रय और नामांतरण की प्रक्रिया में बेवजह कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है

शासन को राजस्व का हो रहा नुकसान

बैठक में यह बात भी सामने आई कि गलत प्रविष्टी दर्ज होने के कारण शासन को स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्रेशन से मिलने वाली आय का नुकसान हो रहा है। इसके अलावा भूमि जिनको अतिशेष घोषित नहीं किया गया है जो “सीलिंग से प्रभावित” या शहरी सीलिंग भूमि के रूप में दर्ज है। “सीलिंग से प्रभावित” या शहरी सीलिंग भूमि की प्रविष्टि दर्ज होने से त्रुटिसुधार के लिए आमजन परेशान हैं। इन प्रकरणों को अब समय सीमा में निपटाना होगा।

भूमि स्वामी के नाम वाली में राहत नहीं

आदेश में कहा गया कि खसरे के कॉलम तीन और पांच में दर्ज नगरीय अतिशेष घोषित शासकीय भूमि के मामले में अभी राहत नहीं मिलेगी। इन भूमियों को शासन से अतिशेष घोषित किया था। इनमें भूमि स्वामी का नाम दर्ज है। यह प्रकरण अभी सीलिंग सेल के अलावा न्यायालयों में प्रचलित हैं। केवल राजस्व अभिलेख के कैफियत कालम नंबर 12 में दर्ज “सीलिंग से प्रभावित या “शहरी सीलिंग भूमि” की प्रविष्टियों के संबंध में यह राहत मिलेगी।

अब चैन मिला, उड़ी थी रातों की नींद

वर्षों से सीलिंग की फांस का दर्द झेल रहे जेडीए और दूसरी कॉलोनियों के लोगों को बड़ी राहत मिली है। जिन लोगों की रातों की नींद उड़ी थी, उनके चेहरे पर मंगलवार को मुस्कान दिखी। उनका कहना था कि जीवनभर की पूंजी जोड़कर जमीन खरीरी और मकान बनाया था मगर हम नहीं बल्कि शासन उसका मालिक हो गया। लंबी लड़ाई के बाद खसरों से सीलिंग शब्द हटाने की पहल हुई है। अब वे इस जंजीर से मुक्त हो सकेंगे। उन्होंने कलेक्टर के निर्णय और पत्रिका के अभियान के प्रति आभार जताया।

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पत्रिका की मुहिम की सराहना

पत्रिका की मुहिम पर जेडीए आवासीय कल्याण महासंघ के पदाधिकारियों ने दो महीने सीलिंग से मुक्ति के लिए आंदोलन चलाया था। दरअसल राजस्व विभाग ने जेडीए के खसरों में वर्ष 2020 में गलती से सीलिंग दर्ज कर दिया था। जबकि यह कॉलोनियां 30 से 40 साल पुरानी हैं। इस पर एक जनआंदोलन चलाया गया। कॉलोनियों के लोगों ने सीलिंग नहीं हटने पर विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी प्रशासन को दी थी। हालांकि लगातार दबाव के बाद इस दिशा में पहल हुई। फिर एसडीएम की तरफ से सीलिंग को विलोपित करने के लिए आदेश जारी किए गए। अभी जिले में नगरीय अतिशेष घोषित शासकीय भूमि को छोड़कर शेष राजस्व खसरों में दर्ज “सीलिंग से प्रभावित” या “शहरी सीलिंग भूमि” की प्रविष्टि को एक जुलाई 2024 से प्रभावहीन का करने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में कलेक्टर दीपक सक्सेना ने आदेश जारी किया है। इस बीच आभार जताने के लिए महासंघ के लोग एकत्रित हुए इस दौरान आरके प्यासी, ओपी दवे, एमपी मिश्रा, संजू श्रीवास्तव, हदेश खरे, हैप्पी मिश्रा, प्रवीण विश्वकर्मा, आर भट्ट मौजूद रहे।

 

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यह बहुत बड़ी राहत है। जेडीए आवासीय कल्याण महासंघ पत्रिका की मुहिम और कलेक्टर के निर्णय की सराहना करता है। उन्होंने लोगों की पीड़ को समझा। लोगों ने अपने हक के लिए लंबी लड़ाई लडी है। उम्मीद करते हैं, सभी प्रकरणों में आदेश होने तक प्रशासन का सहयोग ऐसे ही मिलेगा।

विनोद दुबे, अध्यक्ष, जेडीए आवासीय संघ

खसरों से सीलिंग शब्द हटाने की मांग पुरानी है। जेडीए की सारी कॉलोनी इससे प्रभावित थीं। इसमें पत्रिका ने बड़ा सहयोग किया। इस विषय को प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के सामने रखा। कम से कम प्रशासन ने माना कि यह राजस्व विभाग की गलती थी। अब इसे सुधारा जा रहा हैं।

रवि शर्मा, जेडीए कॉलोनी निवासी

व्यक्तिगत जमीनों को सीलिंग में दर्ज कर दिया गया था। यह अलग ही तरह का प्रकरण था। हमारी उसमें कोई गलती नहीं थी लेकिन उसे दूर करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी है। अब कलेक्टर का आदेश जारी हुआ है। यह जेडीए के साथ दूसरी कॉलोनियों के लिए राहत की बात है।राजकुमार जैन, जेडीए कॉलोनी निवासी

यह आदेश हुआ है लेकिन इसमें पूरी तरह राहत नजर नहीं आ रही है। आदेश के बिंदु क्रमांक 16 और 18 में बड़ा अंतर है। इन दोनों के अध्ययन से यह पता नहीं लग रहा है कि जेडीए की कॉलोनियों को पूरी राहत मिली है अथवा नहीं। इसके लिए अलग से स्पष्टीकरण आना चाहिए।

आरएन मिश्रा, जेडीए कॉलोनी निवासी

सीलिंग बाबत आदेश दिया है उसमें कॉलम नंबर 12 में जो सीलिंग दर्ज की गई है इसमें 18 नंबर में कलेक्टर के आदेश में यह लिखा है कि खसरा नंबरों के लिए न्यायालय कलेक्टर जबलपुर के आदेश पारित होने की प्रतीक्षा की जावे। इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।दिलीप कुमार नेमा, स्थानीय निवासी

हमारी तो रातों की नींद उड़ गई थी। मकान बने थे लेकिन नामांतरण और बटवारा नहीं हो पा रहा था। सीलिंग शब्द ने सारी प्रक्रिया को रोक दिया था। अब उससे राहत मिली है। अब यहां के लोक अपनी संपत्ति का क्रय और विक्रय कर सकेंगे। प्रशासन और पत्रिका की पहल सराहनीय है।

आरएन पांडे, जेडीए कॉलोनी निवासी

इस काम के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई है। अब जाकर राहत मिली है। यहां की कॉलोनिया कई साल पुरानी हैं लेकिन राजस्व विभाग और जेडीए गलती के कारण हम लोगों को यह परेशानी उठानी पड़ी। जिला प्रशासन से चीजों को समझा और आदेश जारी किया है।

सुशील उपाध्याय, जेडीए कॉलोनी निवासी

 

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