साल 2016 में स्पेक्ट्रम नीलामी कुल 65,789 करोड़ रुपये की रही थी, जिसमें सरकार को 32,434 करोड़ रुपये मिले। वहीं, साल 2015 में नीलामी की कुल कीमत 1.09 लाख करोड़ रुपये रही। इस दौरान सरकार की झोली में 28,872 करोड़ रुपये आये थे।
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क्या हैं इस गिरावट के दो बड़े कारण
इसके पहले टेलिकाॅम रेग्युलेटरी अथाॅरिटी ऑफ इंडिया ( Telecom Regulatory Authority of India ) ने 8,664 मेगाहार्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए करीब 4.9 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया था। स्पेक्ट्रम की नीलामी में इतनी भारी गिरावट के पीछे सबसे प्रमुख कारण यह है कि ट्राई ने टेलिकाॅम ऑपरेटर्स की वित्तीय हालत को देखते हुए उच्च रिजर्व प्राइस की बात कही है। एक और बड़ा कारण यह है कि साल 2016 की तुलना में इस समय में ऑपरेटर्स की संख्या में भी गिरावट आई है। इस साल केवल 3 ही ऑपरेटर्स हैं जो इस नीलामी में भाग ले सकते हैं।
टेलिकाम मंत्री ने गठन किया कमेटी
सरकार भी इस बात से सहमत है कि टेलिकाॅम ऑपरेटर्स वित्तीय परेशानियों से जूझ रहे हैं। इसको ध्यान में रखते हुए टेलिकाॅम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने टेलिकाॅम सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन किया है। रविशंकर द्वारा गठित यह कमेटी टेलिकाॅम सेक्टर पर विभिन्न तरह के पड़ने वाले बोझ जैसे लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम उपयोग चार्ज आदि का रिव्यू करेगी।
गत शुक्रवार को पेश किए गए यूनियन बजट 2019 में, टेलिकाॅम सेक्टर से कुल राजस्व का अनुमान 50,519 करोड़ रुपये रहा है। हालांकि, अंतरिम बजट की तुलना में यह अनुमान 41,519.76 करोड़ रुपये ही रहा था। नीलामी के अलावा टेलिकाॅम सेक्टर से होने वाली कमाई में ऑपरेटर्स से लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम उपयोग करने का चार्ज आदि होता है।
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