यूनिवर्सिटी के पास पिछले सत्र में करीब आधा दर्जन ऐसी अंकसूची और डिग्री वेरिफिकेशन के लिए आई जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं मिल पाया। जांच में पाया कि ये डिग्री और अंकसूची फर्जी हैं। निजी कंपनियों से मिले ये दस्तावेज बगैर वेरिफिकेशन के ही लौटा दिए गए। ये अंकसूची यूनिवर्सिटी द्वारा जारी अंकसूची से हूबहू मेल खा रही थी। यूनिवर्सिटी को आशंका है कि फर्जी डिग्री और अंकसूची तैयार करने वाला गिरोह सक्रिय है। इस पर स्थायी रूप से रोक लगाने के लिए डिग्री और अंकसूची के प्रारूप में नए सिक्योरिटी फीचर शामिल करने पर सहमति बनी। अधिकारियों के अनुसार अगले सत्र से ही ऐसी अंकसूची जारी की जाने लगेगी, जिसकी डुप्लीकेसी की कोई गुंजाइश न रहे। यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) ने भी डिग्री और अंकसूची के फर्जीवाड़े को देखते हुए सिक्योरिटी फीचर शामिल करने के निर्देश दिए हैं।
ऑनलाइन हो पाएगा वेरिफिकेशन
नई अंकसूची में क्यूआर कोड जोडऩे से मैन्युअल वेरिफिकेशन का झंझट भी खत्म हो जाएगा। आवेदक कहीं से भी अपनी अंकसूची वेरिफाय कर सकता है। नौकरी का आवेदन करने वालों की अंकसूची यूनिवर्सिटी भिजवाई जाती है। इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है। क्यूआर कोड से कंपनी हाथोंहाथ कोड स्कैन करते हुए अंकसूची की सत्यता जांच सकेगी। इससे यूनिवर्सिटी स्टाफ का समय भी बचेगा।
अंकसूची के प्रारूप में क्यूआर कोड और होलोग्राम जोडऩे से इसकी नकल की गुंजाइश नहीं होगी। फिर भी अगर कोई कॉपी करता है तो वेरिफिकेशन में आसानी से गड़बड़ी पकड़ी जा सकती है। – प्रो. नरेंद्र धाकड़, कुलपति