हम बात कर रहे हैं यशवंत सागर के पास बसे बदरखां की। यहां प्राचीन काशी-विश्वनाथ शिव मंदिर है। इसकी स्थापना किसने की, यह ज्ञात नहीं है। बड़े-बुजुर्ग इसे स्वयंभू बताते हैं। कहते हैं कि गांव बसने से पहले से यह शिवलिंग यहां स्थापित है। जब यशवंत सागर डेम निर्माण करने की योजना बनी तो ठेकेदार ने इस मंदिर को हटाने के लिए कहा। यह मंदिर बांध की राह में आ रहा था। महाराजा यशवंत राव ने इसकी अनुमति दे दी।
50 फीट तक खोद डाला
विधि-विधान से पूजन करने के बाद जब शिवलिंग बाहर निकालने के लिए गड्ढा खोदना शुरू हुआ तो सब देखकर दंग रह गए। सात दिनों तक खुदाई चली और 45 से 50 फीट तक खोद दिया गया। मजदूर जमीन खोदते रहे, लेकिन शिवलिंग का भूमिगत सिरा नहीं मिला। इस पर महाराज ने इस मंदिर की बजाय बांध को ही शिफ्ट करने की योजना बनाई। यह चमत्कार देख वहां काम करने आए ठेकेदार वहीं पर बस गए। उनके बाद दूसरे लोग आते रहे और पूरा गांव ही बस गया।
टीला काट बनाया मंदिर
गांव के ही मनोज चौकसे ने बताया कि यहां पहले टीला था। ग्रामीणों ने टीले को काटा और मंदिर निर्माण किया। आसपास बगीचा भी बनाया। तलघर में पुजारी परिवार रहता है। शिवलिंग के पास कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। नंदी की मूर्ति खंडित होने पर नई लगाई गई। इसके अलावा सभी प्रतिमाएं पुरानी हैं। कुछ नई मूर्तियां भी लगाई गईं हैं।
दावा : नाग महाराज करते हैं आरती
पुजारी जगदीश ने बताया कि उनकी चार पीढिय़ां इस मंदिर में पूजा करती आ रही हैं। मंदिर में रात को आरती होती है। वह करीबन 30 वर्षों से पुजारी हैं। उनका दावा है कि देर रात को यहां नाग महाराज आकर आरती करते हैं। एक बार उन्हें आरती की आवाज सुनाई दी थी। यहां पहले महाशिवरात्रि पर मेला लगता था। अब मेला तो नहीं लगता, लेकिन मंदिर में पूजा करनेवालों की भीड़ रहती है। लोग मन्नतें मांगते हैं और पूरी होने पर यहां आकर पूजा करते हैं।
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