आपको बता दें कि, इंदौर हाईकोर्ट में लगी याचिका में तथ्य रखा गया कि, मामले में हो रही मजिस्ट्रियल जांच का निष्पक्ष होना संभव नहीं है, क्योंकि इंदौर नगर निगम के 43 ड्राइवर कर्मचारी प्रशासनिक अधिकारियों के यहां निशुल्क सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। साथ ही, अपर कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर जिनके पास जांच है उनके पास ही नगर निगम के तीन कर्मचारी निशुल्क काम कर रहे हैं। ऐसे में मजिस्ट्रियल जांच निष्पक्ष होना कैसे संभव है ?
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सबूत छिपाने के लिए बावड़ी को तोड़ा गया- याचिकाकर्ता
हाईकोर्ट में दायर याचिका में इस बात का भी उल्लेख है कि शासन ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं। ये जांच कभी भी निष्पक्ष हो नहीं सकती। सरकार के ही अधिकारी इसकी जांच करेंगे। इसकी रिपोर्ट अपने हिसाब से बनवा ली जाएगी। सीबीआई जांच या अन्य ऐसे किसी बिंदु को लेकर कुछ नहीं कहना है। मुद्दे की बात है कि, घटना में 36 लोगों की जान गई, इसकी जिम्मेदारी कैसे तय होगी ? जिम्मेदारों को सजा कैसे मिलेगी ? बावड़ी सूख चुकी थी। उसमें सीवरेज का पानी मिल रहा था। कीचड़, गाद, जहरीली गैस से लोगों की मौत हुई, इसलिए घटना के बाद सभी ने एकजुट होकर बावड़ी को तोड़ दिया ताकि कोई सबूत ही न मिले।
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हादसे का शिकार बावड़ी नगर निगम रिकॉर्ड में ही नहीं
इंदौर हाई कोर्ट में लगी याचिका में उल्लेख किया गया कि, नगर निगम में 629 हुए और बावड़ी रिकॉर्ड में दर्ज है, लेकिन जिस बेलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी में हादसा हुआ। वहीं बावड़ी नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। 25 अप्रैल को जारी हुए निगम के नोटिस में लिखा गया है। नोटिस के जवाब में मंदिर के ट्रस्टी सेवाराम गलानी और सचिव मुरली सबनानी ने जवाब दिया था। बावड़ी जर्जर हो रही है इसका रखा और ठीक ढंग से किया जाए ताकि इसे पीने का जल स्त्रोत बनाया जा सकें। इसमें नगर निगम की मदद की आवश्यकता है इसके बाद भी इस बावड़ी को लेकर नगर निगम के पास कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। 23 अप्रैल को नगर निगम ने नोटिस दिया और 25 अप्रैल को मंदिर समिति नगर निगम को जवाब दे दिया गया था।