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Diwali Special Guide 2024: धनतेरस, दिवाली से भाईदूज तक, यहां पढ़ें शुभ मुहूर्त पूजा विधि समेत हर जानकारी

Diwali 2024: दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से हो रही है। इसके बाद रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाईदूज पर इसका समापन होगा। इन त्योहारों में उत्सव तो मनाया ही जाएगा, पूजा पाठ, अनुष्ठान भी किए जाएंगे। आइये जानते हैं इन त्योहारों का मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, उपाय, क्या करें क्या न करें आदि (puja date time and muhurat)…

जयपुरOct 30, 2024 / 12:50 pm

Pravin Pandey

Diwali 2024 Five day Deepotsav from 29 October

Diwali 2024 Five day Deepotsav from 29 October: पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत 29 अक्टूबर से हो रही है।

Danteras 2024: दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से ही होती है। इस दिन प्रदोष काल और स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी, कुबेर और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का घर पर आगमन होता है और पूजा पाठ से प्रसन्न होकर वो स्थायी रूप से रूक जाती हैं।
इससे उनकी कृपा से घर में सुख समृद्धि आती है। मान्यता है कि इस दिन खरीदारी भी करना चाहिए, ऐसा करने से घर में संपत्ति 13 गुना बढ़ती है। इस साल धनतेरस 29 अक्टूबर को है, आइये जानते हैं धनतेरस पूजा का मुहूर्त और धनतेरस खरीदारी का मुहूर्त …

1 घंटा 40 मिनट है धनतेरस पूजा मुहूर्त

धनतेरस का शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2024 Subh Muhurat)


कार्तिक त्रयोदशी तिथि आरंभः 29 अक्टूबर सुबह 10:31 बजे से
कार्तिक त्रयोदशी तिथि का समापनः 30 अक्टूबर दोपहर 01: 15 बजे
धनतेरस त्योहार और यम दीप जलाने का डेटः 29 अक्टूबर
धनतेरस पूजा का मुहूर्तः शाम 6.33 से रात 8.13 बजे तक
(कुल पूजा अवधिः 01 घण्टा 40 मिनट)


धनतेरस पर प्रदोष काल का समयः शाम 5.39 बजे से रात 8.13 बजे तक
वृषभ लग्न (स्थिर लग्न): शाम 6.33 बजे से रात 8.29 बजे तक

धनतेरस खरीददारी का शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2024 Shopping Muhurat)


धनतेरस के दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है, यह योग खरीदारी आदि कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। आइये जानते हैं धनतेरस पर खरीदारी के शुभ मुहूर्त …

पहला मुहूर्तः 29 अक्टूबर को सुबह 6.31 बजे से 10.31 बजे तक
दूसरा मुहूर्तः सुबह 11.42 बजे से 12.27 बजे तक
गोधूलि मुहूर्तः शाम 5.38 बजे से शाम 06.04 बजे तक

मां लक्ष्मी के मंत्र

ॐ धन्यायै नमः।
ॐ हिरण्मय्यै नमः।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।
ॐ कमलायै नमः।
ॐ हरिवल्लभायै नमः।

कुबेर मंत्र

ॐ कुबेराय नमः।
ॐ धनदाय नमः।
ॐ श्रीमाते नमः।
ॐ यक्षेशाय नमः।
ॐ गुह्यकेश्वराय नमः।

धन्वंतरि मंत्र

ॐ धन्वन्तरये नमः॥

धनतेरस पूजा विधि

1.धनतेरस के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान ध्यान के बाद साफ वस्त्र पहनें, इसके बाद मंदिर की सफाई करें।
2. सूर्य देव को जल अर्पित करें, सभी देवताओं का ध्यान करें।

3. शाम को स्नान ध्यान के बाद प्रदोषकाल के शुभ मुहूर्त में चौकी पर मां लक्ष्मी, गणेश, भगवान धन्वंतरी और कुबेर जी की प्रतिमा को विराजमान करें।
4. दीपक जलाकर चंदन का तिलक लगाएं, फल फूल, मिठाई अर्पित करें, धूप, दीप, अगरबत्ती जलाएं।

5. इसके बाद सभी के मंत्रों का एक-एक माला जाप करें। कनकधारा स्तोत्र, धनवंतरी स्तोत्र, कुबेर की स्तुति पढ़ें और आरती गाएं।
6. लक्ष्मी यंत्र घर लाएं हैं तो उसकी पूजा करें, बाद में श्रद्धा अनुसार दान करें।

7. बाद में घर के बाहर यम दीप भी जलाएं, मान्यता है कि इससे घर के सदस्यों की अकाल मृत्यु नहीं होती है।

धनतेरस की शाम न करें ये गलती

धनतेरस पर सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि धनतेरस की शाम उन वस्तुओं को किसी को देने से बचें जो माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि इन चीजों को किसी और को देने से घर की बरकत, सुख-शांति उसी के साथ चली जाती है। इसके कारण आपकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। मान्यता है कि धनतेरस पर प्रदोषकाल में धन या पैसा, झाड़ू, प्याज-लहसुन, नमक और चीनी कीसी को नहीं देना चाहिए।

31 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी


भविष्यवक्ता डॉ. अनीष व्यास के अनुसार नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।

चतुर्दशी तिथि प्रारंभः 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्तः 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक

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कब मनाएं दिवाली, हो गया फैसला

5 दिवसीय दीपोत्सव का मुख्य पर्व दिवाली 2024 है, लेकिन इस साल कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इसके लिए दो तरह के मत हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 31 अक्टूबर को दिवाली मनाएं तो कुछ का मानना है कि 1 नवंबर को दिवाली मनाना चाहिए। ऐसी स्थिति में स्थानीय परंपराओं के आधार पर आपको निर्णय करना होगा बहरहाल हम जानते हैं। दिवाली के मुहूर्त को लेकर दोनों तर्क और मुहूर्त ….
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कार्तिक अमावस्या आरंभः 31 अक्टूबर गुरुवार 2024 को दोपहर 3.52 बजे से

अमावस्या तिथि समापनः 1 नवंबर शुक्रवार 2024 को शाम 06.16 बजे तक

1 नवंबर को दिवाली मनाने के लिए शुभ मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा और दीपावलीः शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 को
लक्ष्मी पूजा मुहूर्तः शाम 05:36 बजे से 06:16 बजे तक
अवधिः 00 घण्टे 41 मिनट

प्रदोष कालः शाम 05:36 बजे से शाम 08:11 बजे तक
वृषभ कालः शाम 06:20 बजे से शाम 08:15 बजे तक
(लक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न के बिना है)
निशिता कालः रात 11:39 बजे से रात 12:31बजे (2 नवंबर सुबह)
सिंह लग्नः 2 नवंबर को सुबह 12:50 (रात) से सुबह 03:07 बजे तक
(अमावस्या तिथि निशिता मुहूर्त के साथ व्याप्त नहीं है, इसलिए निशिता काल में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त नहीं है।)

चौघड़िया पूजा मुहूर्त

दिवाली लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत): सुबह 06:33 बजे से सुबह 10:42 बजे तक
अपराह्न मुहूर्त (चर): शाम 04:13 बजे से शाम 05:36 बजे तक
अपराह्न मुहूर्त (शुभ): दोपहर 12:04 बजे से दोपहर 01:27 बजे तक
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31 अक्टूबर को दिवाली मनाने के लिए शुभ मुहूर्त

इंदौर में जय महाकाली मंदिर खजराना के प्रबंधक पं गुलशन अग्रवाल के अनुसार दीपावली पर्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रदोष वेला एवं महानिशीथ काल 31 अक्टूबर को ही मिल रहे हैं। अतः इस वर्ष दीपावली पर्व उदया चतुर्दशी तिथि में 31 को ही मनाया जाना चाहिए। पर्व काल होने से सम्पूर्ण दिवस पर्यंत पूजन कर सकते हैं।
प्रीति योग में अवसरित दीपोत्सव पर्व के शुभ दिन यमदीपदान एवं महालक्ष्मी कूबेर पूजन करने के लिए शुभ मुहूर्त। पं. गुलशन अग्रवाल से जानिए 31 अक्टूबर को दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त

दिवाली चौघड़िया

प्रातः 06.32.21 से 07.56.14 तक (शुभ)
प्रातः 10.44.00 से दोप. 12.07.54 तक (चर)
दोपहर 12.07.55 से 01.31.47 तक (लाभ)
दोपहर 04.19.33 से सायं 05.43.27 तक (शुभ)
सायं 05.43.28 से 07.19.38 तक (अमृत)
सायं 07.19.39 से रात्रि 08.55.49 तक (चर)
रात्रि 12.08.11 से 01.44.22 तक (लाभ)

शुभ स्थिर लग्न से

वृश्चिकः प्रातः 07.47.01 से 10.02.47 तक
(नवांश – प्रातः 08.47.46 से 09.02.54 तक)
कुम्भः दोपहर 01.54.54 से 03.28.11 तक
(नवांश – दोपहर 02.37.26 से 02.47.44 तक)
वृषभः सायं 06.39.40 से रात्रि 08.37.59 तक
(नवांश सायं 07.29.53 से 07.43.01 तक)
सिंहः रात्रि 01.07.07 से 03.18.32 तक
(नवांश – रात्रि 02.06.03 से 02.20.37 तक)
शुभ अभिजित मुहूर्त

प्रातः 11.43.54 से दोपहर 12.31.54 तक

शुभ प्रदोष वेला

सायं 05.43.27 से 07.51.41 तक

शुभ महानिशीथ काल

रात्रि 11.44.11 से 12.32.11 तक

अतिविशिष्ट मुहूर्त


इसमें शुभ चौघड़िया, स्थिर लग्न और लग्न नवांश, गुरु, शुक्र और शनि की होरा, प्रदोष वेला, महानिशीथ एवं अभिजीत काल का समावेश है
प्रातः 06.32 मि. से 07.32 मि. तक
प्रातः 09.32 मि. से 10.02 मि. तक
प्रातः 11.43 मि. से दोप. 12.07 मि. तक
दोप. 12.11 मि. से 12.31 मि. तक
दोप. 01.54 मि. से 02.32 मि. तक
दोप. 04.32 मि. से 05.32 मि. तक
सायं 05.43 मि. से 07.20 मि. तक
सायं 07.32 मि. से 07.43 मि. तक
सायं 07.51 मि. से रात्रि 08.55 मि. तक
रात्रि 12.08 मि. से 12.32 मि. तक
रात्रि 02.06 मि. से 02.20 मि. तक
रात्रि 02.32 मि. से 03.18 मि. तक
नोटः हालांकि पं. गुलशन अग्रवाल का मानना है कि शुद्धम् लोक विरुद्धम् न चरणीयम् न करणीयम् यानी कोई कार्य कितना भी शास्त्र सम्मत क्यों न हो, यदि जनभावना के अनुरूप न हो तो उसे नहीं करना चाहिए। जनभावना और शास्त्र भावार्थ में मतभिन्नता को देखते हुए उपरोक्त श्लोक का अनुसरण करते हुए इस वर्ष दीपोत्सव पर्व 01 नवंबर 2024 शुक्रवार को भी मना सकते हैं। इस दिन यमदीपदान और महालक्ष्मी कूबेर पूजन करने के लिए शुभ मुहूर्त ये हैं..

1 नवंबर को पूजा मुहूर्त चौघड़िया से

प्रातः 06.32.54 से 07.56.38 तक (चर)
प्रातः 07.56.39 से 09.20.23 तक (लाभ)
प्रातः 09.20.24 से 10.44.08 तक (अमृत)
दोप. 12.07.52 से 01.31.37 तक (शुभ)
दोप. 04.19.06 से सांयः 05.42.51 तक (चर)
रात्रि 08.55.30 से 10.31.49 तक (लाभ)
रात्रि 12.08.09 से 01.44.28 तक (शुभ)
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मां लक्ष्मी की स्तुति

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

दिवाली पूजा विधि

1. दिवाली पूजा के लिए सबसे पहले ईशान कोण या उत्तर दिशा में साफ सफाई करके स्वास्तिक बनाएं और उस पर चावल की ढेरी रखें। इसके बाद उस पर लकड़ी का पाट बिछाएं। पाट पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। तस्वीर में गणेश और कुबेर की तस्वीर भी हो, माता के दाएं और बाएं सफेद हाथी के चित्र भी होना चाहिए।
2. पूजन के समय पंचदेव सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की स्थापना करें, इसके बाद धूप, दीप, अगरबत्ती जलाएं, और सभी देवी देवता की तस्वीरों पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें।

3. अब खुद कुश के आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा करें, इसमें पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार सभी चीजें शामिल हों, पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए। वहीं आह्वान के समय पुलहरा चढ़ाना चाहिए।
4. माता लक्ष्मी सहित सभी देवी देवता के मस्तक पर हल्दी कुमकुम, चंदन और चावल लगाएं। फिर फूल माला चढ़ाएं, पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी अंगुली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि) आदि अर्पित करें। षोडशोपचार की सभी सामग्री अर्पित करते समय ये मंत्र भी जपें।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम: धनप्रदायै नमो नम:‍ विश्‍वजनन्यै नमो नम:।

5. इसके बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। इसमें लक्ष्मीजी के लिए मखाना, सिंघाड़ा, बताशा, ईख, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर-भात आदि चढ़ा सकते हैं। पूजन के दौरान 16 प्रकार की गुजिया, पपड़ियां, अनर्सा, लड्डू भी चढ़ाएं जाते हैं। इसके अलावा चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेंहूं, नारियल, केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग भी अर्पित कर सकते हैं।
(ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में न किया गया हो, इसके अलावा पकवान पर तुलसी का पत्ता जरूर रखा हो। )

6. पूजा करने के बाद अंत में खड़े होकर उनकी आरती गाएं और कपूर आरती जरूर करें। (आरती को सबसे पहले उसे अपने आराध्य के चरणों की तरफ चार बार, इसके बाद नाभि की तरफ दो बार और अंत में एक बार मुख की तरफ घुमाएं। ऐसा कुल सात बार करें। आरती करने के बाद उस पर से जल फेर दें और प्रसाद स्वरूप सभी लोगों पर छिड़कें।)
7. मुख्‍य पूजा के बाद अब मुख्य द्वार या आंगन में दीये जलाएं। एक दीया यम के नाम का भी जलाएं। रात्रि में घर के सभी कोने में भी दीये जलाएं।

8. पूजा और आरती के बाद ही किसी से मिलने जाएं, मिठाई बांटे या पटाखें फोड़े।

3 नवंबर को भाईदूज


भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है। भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं। इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है।

यहां पढ़िए दिवाली की ई-बुक

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