1 घंटा 40 मिनट है धनतेरस पूजा मुहूर्त
धनतेरस का शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2024 Subh Muhurat)
कार्तिक त्रयोदशी तिथि आरंभः 29 अक्टूबर सुबह 10:31 बजे से
कार्तिक त्रयोदशी तिथि का समापनः 30 अक्टूबर दोपहर 01: 15 बजे
धनतेरस त्योहार और यम दीप जलाने का डेटः 29 अक्टूबर
(कुल पूजा अवधिः 01 घण्टा 40 मिनट)
धनतेरस पर प्रदोष काल का समयः शाम 5.39 बजे से रात 8.13 बजे तक
वृषभ लग्न (स्थिर लग्न): शाम 6.33 बजे से रात 8.29 बजे तक
धनतेरस खरीददारी का शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2024 Shopping Muhurat)
धनतेरस के दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है, यह योग खरीदारी आदि कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। आइये जानते हैं धनतेरस पर खरीदारी के शुभ मुहूर्त …
पहला मुहूर्तः 29 अक्टूबर को सुबह 6.31 बजे से 10.31 बजे तक
दूसरा मुहूर्तः सुबह 11.42 बजे से 12.27 बजे तक
गोधूलि मुहूर्तः शाम 5.38 बजे से शाम 06.04 बजे तक
मां लक्ष्मी के मंत्र
ॐ धन्यायै नमः।ॐ हिरण्मय्यै नमः।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।
ॐ कमलायै नमः।
ॐ हरिवल्लभायै नमः।
कुबेर मंत्र
ॐ कुबेराय नमः।ॐ धनदाय नमः।
ॐ श्रीमाते नमः।
ॐ यक्षेशाय नमः।
ॐ गुह्यकेश्वराय नमः।
धन्वंतरि मंत्र
ॐ धन्वन्तरये नमः॥धनतेरस पूजा विधि
1.धनतेरस के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान ध्यान के बाद साफ वस्त्र पहनें, इसके बाद मंदिर की सफाई करें।धनतेरस की शाम न करें ये गलती
धनतेरस पर सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि धनतेरस की शाम उन वस्तुओं को किसी को देने से बचें जो माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि इन चीजों को किसी और को देने से घर की बरकत, सुख-शांति उसी के साथ चली जाती है। इसके कारण आपकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है। मान्यता है कि धनतेरस पर प्रदोषकाल में धन या पैसा, झाड़ू, प्याज-लहसुन, नमक और चीनी कीसी को नहीं देना चाहिए।31 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी
भविष्यवक्ता डॉ. अनीष व्यास के अनुसार नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।
चतुर्दशी तिथि प्रारंभः 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्तः 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक ये भी पढ़ेंः Narak Chaturdashi: यम दीपक जलाने का यह है सही तरीका, यहां जानें पूरी नरक चतुर्दशी पूजा विधि
कब मनाएं दिवाली, हो गया फैसला
5 दिवसीय दीपोत्सव का मुख्य पर्व दिवाली 2024 है, लेकिन इस साल कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इसके लिए दो तरह के मत हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 31 अक्टूबर को दिवाली मनाएं तो कुछ का मानना है कि 1 नवंबर को दिवाली मनाना चाहिए। ऐसी स्थिति में स्थानीय परंपराओं के आधार पर आपको निर्णय करना होगा बहरहाल हम जानते हैं। दिवाली के मुहूर्त को लेकर दोनों तर्क और मुहूर्त ….1 नवंबर को दिवाली मनाने के लिए शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा और दीपावलीः शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 कोलक्ष्मी पूजा मुहूर्तः शाम 05:36 बजे से 06:16 बजे तक
अवधिः 00 घण्टे 41 मिनट प्रदोष कालः शाम 05:36 बजे से शाम 08:11 बजे तक
वृषभ कालः शाम 06:20 बजे से शाम 08:15 बजे तक
(लक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न के बिना है)
सिंह लग्नः 2 नवंबर को सुबह 12:50 (रात) से सुबह 03:07 बजे तक
(अमावस्या तिथि निशिता मुहूर्त के साथ व्याप्त नहीं है, इसलिए निशिता काल में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त नहीं है।)
चौघड़िया पूजा मुहूर्त
दिवाली लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत): सुबह 06:33 बजे से सुबह 10:42 बजे तकअपराह्न मुहूर्त (चर): शाम 04:13 बजे से शाम 05:36 बजे तक
अपराह्न मुहूर्त (शुभ): दोपहर 12:04 बजे से दोपहर 01:27 बजे तक
31 अक्टूबर को दिवाली मनाने के लिए शुभ मुहूर्त
इंदौर में जय महाकाली मंदिर खजराना के प्रबंधक पं गुलशन अग्रवाल के अनुसार दीपावली पर्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रदोष वेला एवं महानिशीथ काल 31 अक्टूबर को ही मिल रहे हैं। अतः इस वर्ष दीपावली पर्व उदया चतुर्दशी तिथि में 31 को ही मनाया जाना चाहिए। पर्व काल होने से सम्पूर्ण दिवस पर्यंत पूजन कर सकते हैं।दिवाली चौघड़िया
प्रातः 06.32.21 से 07.56.14 तक (शुभ)प्रातः 10.44.00 से दोप. 12.07.54 तक (चर)
दोपहर 12.07.55 से 01.31.47 तक (लाभ)
दोपहर 04.19.33 से सायं 05.43.27 तक (शुभ)
सायं 05.43.28 से 07.19.38 तक (अमृत)
सायं 07.19.39 से रात्रि 08.55.49 तक (चर)
रात्रि 12.08.11 से 01.44.22 तक (लाभ)
शुभ स्थिर लग्न से
वृश्चिकः प्रातः 07.47.01 से 10.02.47 तक(नवांश – प्रातः 08.47.46 से 09.02.54 तक)
कुम्भः दोपहर 01.54.54 से 03.28.11 तक
(नवांश – दोपहर 02.37.26 से 02.47.44 तक)
वृषभः सायं 06.39.40 से रात्रि 08.37.59 तक
(नवांश सायं 07.29.53 से 07.43.01 तक)
सिंहः रात्रि 01.07.07 से 03.18.32 तक
(नवांश – रात्रि 02.06.03 से 02.20.37 तक)
इसमें शुभ चौघड़िया, स्थिर लग्न और लग्न नवांश, गुरु, शुक्र और शनि की होरा, प्रदोष वेला, महानिशीथ एवं अभिजीत काल का समावेश है
प्रातः 09.32 मि. से 10.02 मि. तक
प्रातः 11.43 मि. से दोप. 12.07 मि. तक
दोप. 12.11 मि. से 12.31 मि. तक
दोप. 01.54 मि. से 02.32 मि. तक
दोप. 04.32 मि. से 05.32 मि. तक
सायं 05.43 मि. से 07.20 मि. तक
सायं 07.32 मि. से 07.43 मि. तक
सायं 07.51 मि. से रात्रि 08.55 मि. तक
रात्रि 12.08 मि. से 12.32 मि. तक
रात्रि 02.06 मि. से 02.20 मि. तक
रात्रि 02.32 मि. से 03.18 मि. तक
1 नवंबर को पूजा मुहूर्त चौघड़िया से
प्रातः 06.32.54 से 07.56.38 तक (चर)प्रातः 07.56.39 से 09.20.23 तक (लाभ)
प्रातः 09.20.24 से 10.44.08 तक (अमृत)
दोप. 12.07.52 से 01.31.37 तक (शुभ)
दोप. 04.19.06 से सांयः 05.42.51 तक (चर)
रात्रि 08.55.30 से 10.31.49 तक (लाभ)
रात्रि 12.08.09 से 01.44.28 तक (शुभ)
- धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज से जुड़ी पठनीय जानकारी
- लक्ष्मी पूजन समेत दीपोत्सव के प्रत्येक दिवस से जुड़ी पूजन विधि, मंत्रोच्चार और आरती
- आरती का ऑडियो खास आपके लिए
मां लक्ष्मी की स्तुति
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
दिवाली पूजा विधि
1. दिवाली पूजा के लिए सबसे पहले ईशान कोण या उत्तर दिशा में साफ सफाई करके स्वास्तिक बनाएं और उस पर चावल की ढेरी रखें। इसके बाद उस पर लकड़ी का पाट बिछाएं। पाट पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। तस्वीर में गणेश और कुबेर की तस्वीर भी हो, माता के दाएं और बाएं सफेद हाथी के चित्र भी होना चाहिए।ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम: धनप्रदायै नमो नम: विश्वजनन्यै नमो नम:। 5. इसके बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। इसमें लक्ष्मीजी के लिए मखाना, सिंघाड़ा, बताशा, ईख, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर-भात आदि चढ़ा सकते हैं। पूजन के दौरान 16 प्रकार की गुजिया, पपड़ियां, अनर्सा, लड्डू भी चढ़ाएं जाते हैं। इसके अलावा चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेंहूं, नारियल, केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग भी अर्पित कर सकते हैं।
3 नवंबर को भाईदूज
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है। भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं। इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है।