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One Nation One Election पर गंभीर सवाल, दिग्विजय सिंह बोले- संघीय ढांचे के लिए फैसला बड़ी चुनौती

One Nation One Election : दिग्विजय सिंह ने कहा- ‘योजना तर्कसंगत नहीं। हमारे देश में अकसर राज्य सरकारें और केंद्र सरकारें अपने पूरे कार्यकाल तक नहीं चला पातीं। ऐसे में, अगर सभी चुनाव एक साथ होते हैं तो राज्यों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है।

इंदौरSep 20, 2024 / 10:21 am

Faiz

One Nation One Election
One Nation One Election को मोदी कैबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद से ही देशभर की राजनीति गरमा गई है। सरकार के इस फैसले पर खामिया गिनाते हुए विपक्ष लगातार सवाल कड़े कर रहा है। इसी कड़ी में देशभर के अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की तरह मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के बाद एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने वन नेशन, वन इलेक्शन के फैसले पर सवाल उठाए हैं। एक कार्यक्रम में शामिल होने इंदौर पहुंचे, दिग्विज ने मीडिया से चर्चा के दौरान मीडिया के समक्ष सवाल उठाते हुए कहा- ये फैसला देश के संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता के लिए बड़ी चुनौती है।
चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने कहा कि ‘ये योजना तर्कसंगत नहीं। हमारे देश में अकसर राज्य सरकारें और केंद्र सरकारें अपने पूरे कार्यकाल तक नहीं चल पातीं। ऐसे में, अगर सभी चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो राज्यों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है। क्या हर बार जब किसी राज्य की सरकार गिरेगी तो पूरे देश में चुनाव होंगे ?’
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प्राथमिकताओं को प्राथमिकता देना होगा मुश्किल

दिग्विजय ने फैसले के व्यावहारिक पहलुओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ‘देश के कई हिस्सों में अलग-अलग समय पर राजनीतिक स्थितियां बदलती रहती हैं। राज्य सरकारें अक्सर स्थानीय मुद्दों के आधार पर अपना कार्यकाल पूरा तक नहीं कर पातीं। अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो तो राज्यों के लिए अपनी स्थानीय प्राथमिकताओं को प्राथमिकता देना मुश्किल हो जाएगा।’

1998-1999 के लोकसभा चुनाव का उदाहरण

यही नहीं, दिग्विजय सिंह ने आगे साल 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों का उदाहरण दिया। उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि, उस समय भी देश ने राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया था। जब बीच में चुनाव कराने पड़े थे। उन्होंने कहा कि ‘अगर ऐसी स्थिति फिर से बनी तो राज्यों की सरकारों को भंग कर दोबारा चुनाव करवाने पड़ेंगे, जिससे देश में अस्थिरता बढ़ने की प्रबल संभावना है।’
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संघीय ढांचे पर असर

दिग्विजय सिंह ने वन नेशन, वन इलेक्शन को देश के संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुए कहा कि ‘ये देश के राज्यों की स्वायत्तता और अधिकारों पर प्रहार है। हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था संघीय ढांचे पर आधारित है, जहां राज्यों को अपने मुद्दों और प्राथमिकताओं के आधार पर चुनाव कराने का अधिकार है। इस तरह के निर्णय से राज्यों की स्वायत्तता कमजोर हो सकती है और केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ सकता है।’

स्थानीय मुद्दों की होगी अनदेखी!

उन्होंने कहा कि सिर्फ यही एक और बड़ी चुनौती ये भी है कि अगर देश में एक साथ चुनाव होंगे तो राज्यों के स्थानीय मुद्दे पीछे छूट सकते हैं। ‘स्थानीय चुनावों में स्थानीय समस्याएं, जैसे- किसानों के मुद्दे, क्षेत्रीय विकास और कानून व्यवस्था के सवाल, अधिक महत्व पाते हैं। लेकिन अगर चुनाव एक साथ होंगे, तो ये मुद्दे राष्ट्रीय बहस में खो सकते हैं।’
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असफलताओं को छिपाने की रणनीति ?

हालांकि, दिग्विजय सिंह ने इस योजना को सीधे तौर पर किसी राजनीतिक दल की रणनीति करार नहीं दिया, लेकिन उन्होंने इशारों में ये जरूर कहा कि ऐसी योजनाएं कहीं न कहीं देश के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए लाई जा रही हैं। ‘देश में कई गंभीर मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन इस तरह की योजनाओं से उन मुद्दों को पीछे धकेला जा सकता है।’

विपक्ष का भी है विरोध

दिग्विजय सिंह ने बताया कि वन नेशन, वन इलेक्शन योजना का कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया है। उन्होंने कहा कि ये समय की मांग है कि सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें और देश के संघीय ढांचे को कमजोर करने वाली किसी भी योजना का विरोध करें। दिग्विजय सिंह के इस बयान से ये स्पष्ट है कि वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर राजनीतिक गलियारों में गंभीर बहस छिड़ी हुई है। जहां एक तरफ केंद्र सरकार इसे चुनाव प्रक्रिया को सुगम बनाने के प्रयास के रूप में देख रही है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल इसे संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं।

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