आधुनिक पीढ़ी पुस्तकालय जाने की बजाय इंटरनेट का प्रयोग करके बाहर से जानकारी जुटाना आसान समझती है। वैसे भी आज के दौर में पुस्तकालय में उतनी साम्रगी नहीं मिलती जितनी कि इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाती है। कहने को तो स्कूलों-कालेजों में पुस्तकालय बनाए जरूर जाते हैं लेकिन वहां पर तो विषय से संबंधित पूरी किताबें नहीं होती। विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर पत्रिका ने पाठकों से जाना कि पुस्तकें पढऩे को लेकर पाठकों की कितनी दिलचस्पी हैं और डिजिटल का कितना असर हुआ है।
हुब्बल्ली के एक शिक्षण संस्थान में सहायक प्राध्यापक नवीन गोपालसा हबीब कहते हैं, किताबें अमर है और जो हमारे व्यक्तित्व का निर्माण कर हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैंं। यही नहीं किताबें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान हस्तांतरित करने का सशक्त माध्यम भी हैं। हां मानता हूं कि बदलते युग में तकनीक की घुसपैठ के कारण किताबों के पठन में थोड़ी सी गिरावट देखने को मिली है। अधिकतर युवा अब फेसबुक, वॉट्सएप तथा इंटरनेट पर अपना समय गुजारना पसंद करते हैं। और उन्ही में से सब कुछ पढऩा भी चाहते हैं लेकिन अनुभव करने में और अनुभव लेने में बहुत अंतर है। पुस्तकें जो सम्पूर्ण ज्ञान देती हैं। यह काम आजकल के इंटरनेट, ई-लाइब्रेरी, मोबाइल नहीं कर सकते। और न ही इनके आने से पुस्तक के अस्तित्व पर कोई प्रभाव पडऩे वाला है। मेरा मानना है कि पुस्तके जो हमे संपूर्ण ज्ञान देती हैं वह सोशल मीडिया नहीं दे सकते।