फोन पर बताए गए इलाज को सिम्टोमेटिक ट्रीटमेंट कहते हैं जिसमें डॉक्टर मरीज की उम्र व उसके बताए लक्षणों जैसे सीने में दर्द, हाथ-पैरों का सुन्न होना, सांस लेने में दिक्कत होना, चक्कर आना, दौरे पडऩा आदि के आधार पर ये बताते हैं कि मरीज को डॉक्टर के पास ले जाने तक क्या-क्या एहतियात बरतनी चाहिए लेकिन इस दौरान डॉक्टर किसी भी तरह की दवाएं नहीं बताते।
रात बे रात या डॉक्टर तक न पहुंच पाने की स्थिति में फौरन राहत के लिए भले ही एक्सपर्ट से दवा पूछ ली हो लेकिन अगले दिन जब भी उन्हें दिखाने जाएं तो अपनी पुरानी मेडिकल रिपोर्ट भी साथ लेकर जाएं। अक्सर लोग ऐसी मेडिकल रिपोर्ट संभालकर रखने को तवज्जो नहीं देते जिसमें चीजें नॉर्मल आई हों। लेकिन इन्हें रखना जरूरी होता है क्योंकि डॉक्टर पिछली और मौजूदा रिपोर्ट का मिलान कर यह पता लगाते हैं कि अब बीमारी के हिसाब से लाइन ऑफ ट्रीटमेंट क्या रखना है।
आजकल लोग घर पर ही ब्लड प्रेशर नापने के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस खरीद लाते हैं। लेकिन इनके साथ प्रामाणिकता का मुद्दा रहता है। जब मरीज इन उपकरणों से बीपी नापकर डॉक्टर से फोन पर दवाएं पूछते हैं तो वे ज्यादा प्रभावी नहीं होतीं। बीपी, डायबिटीज या थायरॉइड ऐसी बीमारियां है जिनकी सही माप जाने बिना डॉक्टर के लिए दवाएं देना संभव नहीं होता। इन समस्याओं में फोन पर दवाएं लेने की बजाय डॉक्टर को दिखाना ही ठीक रहता है।