इस बीमारी के शुरुआती दौर में लक्षणों को पहचानना मुश्किल होता है। लेकिन समय के साथ शरीर के हिलने-डुलने में फर्क दिखने लगता है। इसमें कंपन, चलने में बदलाव, शरीर का मुद्रा बिगड़ना और चेहरे के भाव कम हो जाना शामिल है। इसके अलावा इसमें थकान, नींद की समस्या, उदासी और घबराहट भी हो सकती है।
पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease) दिमाग में डोपामाइन नामक रसायन की कमी के कारण होता है। डोपामाइन हमारे शरीर के हिलने-डुलने में अहम भूमिका निभाता है। पहला चरण: बीमारी का शुरूआती चरण होता है। इसमें हल्के लक्षण होते हैं, जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है। शरीर के एक तरफ कंपन, चलने में बदलाव, मुद्रा में बदलाव और चेहरे के भाव कम हो जाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
दूसरा चरण: बीमारी बढ़ने पर लक्षण गंभीर हो जाते हैं। शरीर के दोनों तरफ कंपन और अकड़न आ सकती है। रोगी अकेले रह तो सकता है, लेकिन दैनिक कामों को करने में दिक्कत होती है।
तीसरा चरण: बीमारी के बीच का चरण होता है। इसमें संतुलन बिगड़ने और गिरने की समस्या ज्यादा हो जाती है। रोगी को रोजमर्रा के कामों में थोड़ी मदद की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन वह फिर भी खुद का ख्याल रख सकता है।
चौथा चरण: बीमारी काफी बढ़ जाती है। रोगी को खुद खड़े होने में भी मुश्किल होती है। उसे रोजमर्रा के कामों में मदद की जरूरत पड़ती है और वह अकेला नहीं रह सकता। पांचवां चरण: बीमारी का आखिरी और गंभीर चरण होता है। पैरों में इतनी अकड़न आ जाती है कि चलना या खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है। कुछ रोगियों को बिस्तर पर ही रहना पड़ता है या उन्हें चलने के लिए व्हीलचेयर की जरूरत होती है। दवाइयां भी असर करना कम कर देती हैं और डॉक्टर और ज्यादा इलाज की सलाह देते हैं।
शुरुआती चरण में दवाओं से लक्षणों को कम किया जा सकता है। लेकिन बाद के चरणों में डॉक्टर ताकतवर दवाइयां देते हैं, जैसे लिवोडोपा, डोपामाइन एगोनिस्ट और माओ-बी इनहिबिटर्स। ये दवाइयां दिमाग में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाती हैं या इसकी कमी को पूरा करती हैं।
डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस): बहुत ज्यादा दवाइयां खाने के बाद भी जब दिक्कत न कम हो तो डॉक्टर डीबीएस की सलाह देते हैं। यह एक ऑपरेशन होता है, जिसमें दिमाग के प्रभावित हिस्से में छोटे इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड छाती पर कॉलरबोन के पास लगाए गए एक उपकरण से जुड़े होते हैं। यह उपकरण दिमाग को ऐसे सिग्नल भेजता है, जिनसे पार्किंसंस के लक्षण कम हो सकते हैं।
आधुनिक इलाज: बीमारी के आखिरी चरण में ज्यादा तरक्कीशुदा इलाज की जरूरत होती है। एक ऐसा इलाज है एमआरआई-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड। यह कम जोखिम वाला इलाज है, जिससे कंपन की समस्या को कम करने में मदद मिली है। इसमें तेज गरम किए गए अल्ट्रासाउंड तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है, ये अल्ट्रासाउंड तरंगें उच्च तापमान पर होती हैं और उन क्षेत्रों को जला देती हैं जो झटके पैदा कर रहे हैं।
IANS