भारत में NAFLD का बढ़ता खतरा The growing threat of NAFLD in India
NAFLD, जो मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी मेटाबोलिक बीमारियों से निकटता से जुड़ा है, तेजी से एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा, “NAFLD को एक प्रमुख गैर-संक्रमणीय रोग (NCD) के रूप में पहचानने में भारत ने नेतृत्व किया है। दस में से एक से तीन लोग इस बीमारी से प्रभावित हो सकते हैं, जो इसके गंभीर प्रभाव को दर्शाता है।”
स्वास्थ्य और प्रारंभिक पहचान पर जोर
मंत्रालय ने बताया, नए दिशानिर्देशों में रोग के शुरुआती चरण में पहचान और स्वास्थ्य के प्रचार पर विशेष जोर दिया गया है। “यह एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की सिफारिश करता है, जिसमें विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं के प्रदाताओं के प्रयासों को मिलाकर NAFLD से प्रभावित व्यक्तियों की समग्र देखभाल की जा सके,”। यह भी पढ़ें – चौंकाने वाला आंकड़ा: हर 3 में से 1 भारतीय को Fatty Liver रोग
जीवनशैली में बदलाव की आवश्यकता
अपूर्व चंद्रा ने NCD से पीड़ित लोगों के लिए निरंतर देखभाल की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कहा कि NAFLD की बढ़ती घटनाओं को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी है। इस दिशा में मंत्रालय का उद्देश्य जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं तक पहुंच बनाकर बीमारी की प्रारंभिक पहचान सुनिश्चित करना है।
राष्ट्रीय कार्यक्रम में NAFLD को मिली जगह
भारत ने 2021 में NAFLD को राष्ट्रीय गैर-संक्रमणीय रोगों की रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS) में एकीकृत किया। मंत्रालय ने यह भी कहा कि देश में NAFLD का प्रकोप 9% से 32% के बीच हो सकता है, जो व्यक्ति की उम्र, लिंग, निवास स्थान और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।
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NAFLD, भारत में लीवर रोगों का एक प्रमुख कारण बन रहा है और यह एक “मूक महामारी” का रूप ले सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि “भारत, वैश्विक स्तर पर गैर-संक्रमणीय रोगों में उच्च योगदान करता है, और मेटाबोलिक बीमारियों का प्रमुख कारण लीवर में ही होता है।”