फ्लू के टीके हमारे शरीर को वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। ये एंटीबॉडी वायरस के बाहरी हिस्से पर मौजूद एक प्रोटीन से चिपक कर उन्हें कोशिकाओं में घुसने से रोकते हैं।
समस्या यह है कि अलग-अलग एंटीबॉडी अलग-अलग तरीकों से इस प्रोटीन से चिपकते हैं और वायरस खुद भी समय के साथ बदलता रहता है, जिससे नए फ्लू स्ट्रेन बनते हैं जो पुराने एंटीबॉडी से बच सकते हैं।
इसलिए हर साल हमें नए फ्लू के टीके लगाने होते हैं, जिनमें सबसे खतरनाक फ्लू स्ट्रेन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में मदद मिलती है। कई वैज्ञानिक ऐसे टीके बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो एक साथ कई तरह के फ्लू स्ट्रेन से बचा सकें, खासकर H1 और H3 नाम के फ्लू स्ट्रेन से, जो सबसे ज्यादा फैलते हैं।
अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसी कोशिश में एक बड़ी बाधा पार की है। कुछ H1 स्ट्रेन में उनके बाहरी प्रोटीन में एक छोटा बदलाव होता है, जिससे कुछ पुराने एंटीबॉडी काम नहीं करते।
लेकिन अब शोधकर्ताओं ने रोगियों के खून के नमूनों के अध्ययन से यह पता लगाया है कि एक नया तरह का एंटीबॉडी है, जो H3 स्ट्रेन और कुछ H1 स्ट्रेन (उनमें भी चाहे वह छोटा बदलाव हो या न हो) दोनों को खत्म कर सकता है।
यह शोध PLOS Biology नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इससे उम्मीद है कि भविष्य में ऐसे फ्लू के टीके बन सकें जो ज्यादा किस्म के फ्लू से बचा सकें। इस खोज से ये भी पता चलता है कि शायद हमें चिकन के अंडों में बनाए जाने वाले फ्लू के टीकों को छोड़कर दूसरे तरीकों से टीके बनाने पर विचार करना चाहिए।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल की होली सिमंस कहती हैं, “हमें हर साल बदलते फ्लू वायरस के साथ बने रहने के लिए नए टीकों की जरूरत होती है। हमारे शोध से पता चलता है कि ज्यादा व्यापक सुरक्षा देने वाले टीके बनाना उम्मीद से ज्यादा आसान हो सकता है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर सही तरह से फ्लू वायरस के संपर्क या टीकाकरण से गुजरा जाए, तो इंसान अपने शरीर में ऐसे एंटीबॉडी बना सकते हैं जो अलग-अलग H1N1 और H3N2 वायरस को खत्म कर सकें। इससे बेहतर टीके बनाने के लिए नए रास्ते खुलेंगे।”
(आईएएनएस)