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करवा चौथ पर भी नहीं देख पाई अपने जिन्दा पति का मूंह कामिनी का मानना है कि दृश्य व शिल्प कला ऐसी अभिव्यक्ति है, जिसमें तूलिका व सूई के माध्यम से हम अपनी भावनाओं को रंगों में उजागर कर सकते हैं। कला को
रोजगार का जरिया बनाने के लिहाज से बढ़ावा मिलना चाहिए। देश में आरक्षण के दंश ने सामान्य वर्ग होने पर कोशिशों पर भीसरकारी नौकरी हाथ नहीं आई। इस टीस के बाद उसकी मंशा चित्रकारी की विधा को विदेश जाकर फैलाने की है।
जयपुर से मास्टर्स इन विजुअल आर्ट (दृश्य कला) कर चुकी कामिनी अब पीएचडी की तैयारी कर रही है। उन्होंने पेंटिंग प्रेम बंसल श्रीगंगानगर, जयपुर के सुधांकर बिवास व उज्जवला तिवाड़ी से सीखी है।
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दर्जनो भेड़ व गर्भवती बकरीयो की मौत जब छठवीं में थी, तभी एक फूल बनाने से इस ओर रुझान हुआ। जो आज उन्हें इस मुकाम तक ले आया। हालांकि उनके मन में चित्रकार बनने की ललक बचपन से ही थी, मां किरण शर्मा व बाबूजी सुशील शर्मा ने काफी प्रोत्साहित किया। प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद बाबूजी ने पढ़ाया। उसकी पैंटिग्स जिंदगी और जिंदगी की रफ्तार, भंवर में फंसी नाव, प्राकृतिक चित्रण, थ्री डायमेंशन मुखाकृति,
महिला अत्याचार, नारी वेदना, समाज में महिलाओं के प्रति बदलते परिवेश उजागर होते हैं। उसने राजनीतिज्ञों व राजनीति पर कटाक्ष करते कार्टून को अपनी तूलिका के माध्यम से केनवॉस व कागज पर उतारा। अमृता शेरगिल व यूरोपियन कलाकारों से प्रेरित रंगों का समायोजन व तकनीकी पैटिंग्स में झलकती है।
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बेटियों ने दी चिता को मुखाग्नि जो जवाहर कला केंद्र जयपुर में प्रदर्शित हो चुकी। कला मेला जयपुर के अलावा कई सम्मान प्राप्त किए। २०१४ में पूर्व मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत को पैंसिंल से निर्मित उनका प्रोट्रेट भेंट किया। शादी के बाद पढ़ाई पर लगी रोक से सुखद दांपत्य जीवन की गुदगुदाहट कष्टों में बदल गई। एक ऐसी घड़ी भी आई जब प्रताडि़त कर उसे पीहर भेज दिया। बावजूद ऐसे संकट के बादलों में
उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी और बीएफए के बाद एमए व एमवीए प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओÓ नारे को सार्थक कर मिसाल कायम की। अब वो एक निजी स्कूल में बच्चों को फाइन आर्ट पढ़ा रही हैं।