डीपीआर बनकर तैयार
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस कार्य की डीपीआर बनकर तैयार हो गई है। घग्घर डायवर्सन चैनल व हनुमानगढ़ शहरी क्षेत्र से गुजर रही नदी के दोनों साइड की लाइनिंग को पक्का करने के कार्य पर करीब 500 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। आगामी बजट सत्र में सरकार स्तर पर इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिलने की उमीद है। इसके लिए जरूरी है कि विभाग व क्षेत्र के जनप्रतिनिधि जनहित के इस मुद्दे को लेकर मिलकर प्रयास करें। ऐसा करने पर निश्चित तौर पर प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलेगी।
वर्तमान में स्थिति यह रहती है कि मानसून सत्र में जैसे ही नदी में पानी की आवक बढ़ती है, पूरा शहर बेचैन हो जाता है। अफसरों की नींद भी उड़ी रहती है। वर्ष 2023 में नदी में करीब 20 हजार क्यूसेक पानी की आवक होने की सूचना मिलते ही अफसरों के हाथ-पांव फूल गए थे। तत्कालीन कलक्टर रुकमणि रियार की सक्रियता की वजह से पानी का प्रबंधन समय पर हो सका।
नदी के तटबंध मजबूत होंगे
इससे पूरा क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आते-आते बचा था। भविष्य में इस नदी की लाइनिंग के पक्का करने पर नदी के तटबंध मजबूत होंगे। नदी का बेड लेवल भी सुधरेगा। इससे जल प्रवाह सुचारू रूप से होने की संभावना है। हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर जिले की बात करें तो यहां करीब डेढ़ सौ किलोमीटर में यह नदी बह रही है। पाकिस्तान सीमा पर जाकर यह पानी ठहरता है। इस नदी में पानी की आवक होने से धान की अच्छी पैदावार होती है।
टूट चुके बंधे, झेल चुके परेशानी
हनुमानगढ़ में शहरवासी वर्ष 1995 में नदी का गुस्सा देख चुके हैं। 1995 में जंक्शन व टाउन ओवरब्रिज के पास बने बंधे टूटने से आधा शहर पानी में डूब गया था। बाढ़ को बीते लंबा समय गुजर गया, लेकिन नदी के बहाव क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए किसी स्तर पर ठोस प्रयास नहीं हुए।
इसके कारण नदी में जब भी पानी की आवक होती है, लोग बेचैन हो जाते हैं। नदी में पानी की आवक होने के बाद अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई शुरू की जाती है। तब तक देर हो जाती है। अब जिस तरह से नदी के विकास की योजना बनाई गई है, उससे काफी उम्मीदें बंधी हैं।
यहां से नदी क्षेत्र में पानी की आवक
घग्घर नदी क्षेत्र की बात करें तो हिमाचल, पंजाब व हरियाणा के आसपास शिवालिक की पहाड़ियों से घग्घर नदी में पानी का प्रवाह होता है। काफी मात्रा में हरियाणा के ओटू हैड पर पानी का भंडारण कर लिया जाता है। इसके बाद राजस्थान में पानी छोड़ा जाता है। इसके बाद अनूपगढ़ के रास्ते घग्घर का पानी पाकिस्तान जाता है। अनूपगढ़ के रास्ते ही पानी पाक सीमा स्थित भेड़ताल पर पहुंचता है। घग्घर का आगमन हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास शिवालिक पहाड़ियों के पास से माना जाता है। घग्घर के पानी से किसानों के साथ ही सरकार का खजाना भी निरंतर भर रहा है। निर्धारित वर्ष के अंतराल में मत्स्य विभाग मछली पालन को लेकर अनुबंध के आधार पर ठेका छोड़ता है।
नदी क्षेत्र में मछली पालन से सरकार को लाखों की आमदनी होती है। हनुमानगढ़ जिले में करीब तीस से चालीस हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती है। बासमती सहित अन्य किस्मों के धान की विदेशों में खूब मांग है। मंडियों में धान की आवक से सरकार को करोड़ों का मंडी टैक्स भी मिलता है।
इस नदी के प्रवाह क्षेत्र की वजह से जिले को धान का कटोरा नाम से भी जाना जाता है। क्षेत्र में धान की अच्छी गुणवत्ता की वजह से लोग इसे पसंद करते हैं। दर्जन भर राइस मिल का संचालन भी आसपास में हो रहा है। इससे कईयों को रोजगार मिल रहा है।
नदी क्षेत्र में दो चरणों में होंगे काम
हनुमानगढ़ शहर से गुजर रही घग्घर नदी के विकास को लेकर घग्घर बाढ़ नियंत्रण व जल संसाधन विभाग की टीम डीपीआर बनाने में लगी है। यह कार्य करीब-करीब पूरा हो गया है। करीब 500 करोड़ की लागत से पहले चरण में नदी की साइड लाइनिंग पक्की होगी। इसके बाद शहरी क्षेत्र में बह रह नदी क्षेत्र में नगर परिषद के सहयोग से लाइटिंग करवाकर तथा इसमें नाव आदि चलाने की योजना है। ताकि पर्यटकों का आनाजाना भी यहां बना रहे। पयर्टन की दृष्टि से भी यह नदी अहम है।