ग्वालियर फोर्ट क्षेत्रफल की दृष्टि से ग्वालियर किला हिंदुस्तान में तीसरे सबसे बड़े फोर्ट में से एक है। यह 1600 एकड़ को कवर करता है। किले की लंबाई 90 मीटर हैं। साथ ही यहां पर प्रतिदिन भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। किले पर गुरु हर गोविंद की याद में एक गुरुद्वारा बना है। साथ ही प्राचीनतम हिंदू शैली का मानसिंह महल है।11वीं शताब्दी का सहस्त्र बाहु मंदिर ,तेली का मंदिर,6वीं शताब्दी का सूरज कुंड,14 वीं शताब्दी की गुफाएं,चतुर्भुज मंदिर आदि शामिल हैं। इसके अलावा जहांगीर महल,कर्ण महल,शाहजहां महल, विक्रम महल खास हैं।
जौहर कुंड और भीम सेन राणा की छत्री भी हैं। किले की तलहटी पर बना गूजरी महल व पुरातत्व विभाग का संग्रहालय भी है। गूजरी महल में मध्यभारत में सबसे अधिक कलेक्शन है। यहां रखी शालभंजिका प्रमुख है। किले पर चलने वाला लाइट एंड साउंड शो सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। हिंदी एवं अंग्रेजी में यह शो ग्वालियर के इतिहास की गाथा सुनाता है। पर्यटन की दृष्टि से इतनी चीजें किसी भी किले में नहीं है। जयविलास पैलेस ग्वालियर का सिंधिया घराना हिंदुस्तान के पांच पुराने घरानों में से एक है। इस घराने ने ग्वालियर को नेशनल एवं इंटरनेशनल लेवल पर अलग पहचान दी हैं।
खजाना तो सुरक्षित था, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। खजाने की जांच करने के कुछ समय बाद ही महाराज जयाजीराव सिंधिया का निधन हो गया। जयाजीराव के बेटे माधवराव सिंधिया काफी छोटे थे, लिहाजा खजाने का कोड वर्ड जयाजीराव सिंधिया के साथ ही चला गया और गंगाजली होते हुए भी गायब हो गया। इस घटना की खबर ग्वालियर के राजदरबार में जोरों पर थी कि अब खजाने का क्या होगा।
ग्वालियर के किले पर गुप्त तहखानों में सिंधिया के महाराजा ने करोड़ों का खजाना रखवाया था। इन तहखानों को ‘गंगाजलीÓ नाम दिया गया था। इतना ही नहीं यहां तक पहुंचने के रास्तों का रहस्य कोड वर्ड के तौर पर ‘बीजकÓ में महफूज रखा गया। जयाजीराव ने 1857 के संघर्ष के दौरान बड़ी मुश्किल से पूर्वजों के इस खजाने को विद्रोहियों और अंग्रेज फौज से बचा कर रखा। बताया जाता है कि इस कोड वर्ड का रहस्य आज भी यू ही बना हुआ है। हालांकि कोड वर्ड को खोजने की कोशिश भी की गई लेकिन जिस युवक द्वारा कोड वर्ड की खोज की जा रही थी उसकी मौत भी एक रहस्य ही बनी हुई है।
ग्वालियर फोर्ट स्थित जहांगीर महल एवं शाहजहां महल के बीच में स्थित बावड़ी और पास में ही स्थित जोहर कुंड मुगलकालीन जल प्रबंधन एवं जल संग्रहण का बेहतरीन उदाहरण है। इसमें बारिश का पानी छतों से एवं आंगन से बहते हुए स्टोन की ढलावदार नालियों से प्रवाहित होकर दोनों कुंड में एकत्रित होता है जो साल के अन्य दिनों में पानी की मांग को तो पूरा करता ही था,साथ ही किले के अन्य तालों को रिचार्ज भी करता था।
इस बीजक का रहस्य सिर्फ महाराजा ही जानते थे। इसके लिए 1857 के गदर के दौरान महाराज जयाजीराव सिंधिया को यह चिंता हुई कि किले का सैनिक छावनी के रूप में उपयोग कर रहे अंग्रेज कहीं खज़ाने को अपने कब्जे में न ले लें। इसलिए 1886 में किला जब दोबारा सिंधिया प्रशासन को दिया गया,तब तक जयाजीराव बीमार रहने लगे थे। वे अपने वारिस माधव राव सिंधिया द्वितीय को इसका रहस्य बता पाते,इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि उनके बाद भी इस बीजक का रहस्य जानने की कोशिश की गई,लेकिन आज तक रहस्य बना हुआ है।
अंग्रेजों के शासनकाल में आज से सौ साल से भी पहले पूरे उत्तर भारत पर ग्वालियर रियासत का प्रशासन था। अंग्रेजों के संरक्षण में ग्वालियर भले ही था, लेकिन इस घराने की समृद्धि भी जगजाहिर थी। 17-18वीं शताब्दी में सिंधिया राजशाही अपने शीर्ष पर थी और ग्वालियर के किले से लगभग पूरे उत्तर भारत पर शासन कर रही थी।
किले में छिपे खजाने को ढूंढने के लिए माधवराव ने अपने सिपाहियों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की। तब उस तहखाने से माधवराव सिंधिया को 2 करोड़ चांदी के सिक्को के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न भी मिले। इस खजाने के मिलने से माधवराव की आर्थिक स्थिति में बहुत मजबूत हो गई। हालांकि किले में अभी भी भारी मात्रा में खजाना छिपा होने की बात बताई गई थी।
बताया जाता है कि माधव राव द्वितीय जब बालिग हुए तब ‘गंगाजलीÓ खजाने को लेकर ऊहापोह और बेचैनी बनी हुई थी। इसी दौरान अंग्रेज कर्नल बैनरमेन ने गंगाजली की खोज में उनकी सहायता का प्रस्ताव दिया। सिंधिया खानदान के प्रतिनिधियों की निगरानी में कर्नल ने ‘गंगाजलीÓ की बहुत तलाश की,लेकिन पूरा खजाना नहीं मिल सका।