सर्वे में शामिल रहे जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के आर्कियोलॉजी प्रोफेसर एसडी सिसौदिया ने बताया कि शिवपुरी के टुंडा-भरका, इमलिया, कलोथरा, भरका खोह में बहुत ऐसे दुर्लभ चित्र व अन्य सामग्री मिली है, जो आदिमानव के पाषाणकाल से जुड़ी हुई हैं।
बकौल सिसौदिया, हमारा पूरा एरिया इस दृष्टिकोण से समृद्धशाली है तथा यहां से कई संस्कृतियों का उद्भव व विकास हुआ है। हमारी टीम में शिवपुरी के अभय जैन भी शामिल रहे तथा हमने पूरा एरिया का सर्वे किया। इसमें शिवपुरी के पोहरी व मुरैना के पहाडगढ़ के बीच आसन नदी है, जिसमें कुंती ने कर्ण को बहाया था, जो महाभारत के समय का है।
सर्वे में शामिल रहे एडवोकेट अभय जैन ने बताया कि आदिमानव के तीन युग हैं, पेजियोलेथिक, मेजियोलेथिक, नियोलेथिक। जिसमें आदिमानव ने अपने औजारों को बदलने के साथ ही गाड़ी भी बनाई थी। शिवपुरी के भरका खोह, कलोथरा, इमलिया, करसेना क्षेत्र में पहाड़ हैं, जिनमें भोट टाइप गुफा हैं, जिनमें पेंटिंग बनी हैं। आदिमानव आते-जाते समय जहां पर रुकते थे, वहां की दीवारों पर पेंटिंग बनाते थे। शिवपुरी में यह रॉक पेंटिंग अलग-अलग समय की बनी हैं। अभय ने बताया कि यूनेस्को ने अभी कलस्टर बनाए हैं, जिसमें माना है कि उस समय की पेंटिंग थीं। इसे वल्र्ड हेरिटेज साइट में शुमार अभी नहीं किया है, लेकिन इसे उन्होंने सर्वेक्षण में शामिल कर लिया है।
यूनेस्को की अस्थाई सूची में शामिल ग्वालियर संभाग के शिवपुरी के जंगलों में सर्वेक्षण के बाद जो संभावनाएं तलाशी जा रही हैं, वे मिल जाती हैं तो फिर इसे यूनेस्को अपनी स्थाई सूची में शामिल कर लेगा। फिर यह स्पॉट हेरिटेज में शामिल होने के साथ ही शिवपुरी दुनिया में पहचाना जाएगा तथा यहां बड़ी संख्या में सैलानी उसे देखने के लिए आएंगे। जिससे शिवपुरी में टूरिज्म भी बढ़ेगा।
शिवपुरी सहित चंबल एरिया में भी कई ऐसे स्थान हैं, जहां पर सघन सर्वेक्षण की जरूरत है। सर्वे में जो मिला है, उससे यह पूरी संभावना है कि आदिमानव के ठिकाने इस एरिया में रहे हैं तथा कई संस्कृतियों का यहां से उद्भव हुआ है। ऐसा हुआ तो विश्व पटल पर शिवपुरी चमकेगा।
-एसडी सिसौदिया, आर्कियोलॉजी प्रोफेसर जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर
एसपी 16013, 14- शिवपुरी में स्थित प्राचीन झरना भरका खोह, जहां गुफाओं के पत्थरों पर ऐसी पेंटिंग हैं