माधवराव सिंधिया की बात सुनकर उस बुजुर्ग ने कहा- मेरे महाराज यहां से निकलने वाले हैं और मुझे उनके दर्शन करने हैं। तभी रमेश शर्मा ने बुजुर्ग से कहा- यही आपके महाराज हैं। यह सुनकर बुजुर्ग माधवराव सिंधिया की तरफ बढ़ा तो माधवराव सिंधिया ने उस बुजुर्ग को गले लगा लिया और अपनी कीमती शॉल उस जुर्ग को ओढ़ा दी। माधवराव ने उस बुजुर्ग से कहा- ठंड बहुत उससे बचना।
इसके बाद माधवराव सिंधिया चंदेरी पहुंचे। यहां वो चंदेरी गेस्ट हाउस में रूके थे। यहां पर उन्हें एक शॉल गिफ्ट की गई। लेकिन उन्होंने तीन दिनों तक उस शॉल को नहीं ओढ़ा। तब रमेश शर्मा ने कहा- आप शॉल क्यों नहीं ओढ़ते हैं तो माधव राव सिंधिया ने कहा- जब भी शॉल उठाता हूं उस गरीब बजुर्ग का चेहरा दिखाई देता है इसलिए शॉल नहीं ओढ़ता हूं।
रमेश शर्मा ने बताया कि माधवराव सिंधिया के निधन के बाद शोक पुस्तिका में एक कवि ने लिखा था- झोपड़ियों का हितचिंतक था, भले महल का वासी था। तन से राजकुमार सलोना, मन से पर संन्यासी था।