बसंत बिहार स्थित हिरनवन कोठी के आधिपत्य को लेकर एक सिविल रिवीजन उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर के समक्ष लंबित है। न्यायालय ने इस संपत्ति के लिए एडवोकेट टीसी नरवरिया तथा एडवोकेट शैलेन्द्र सिंह कुशवाह को रिसीवर नियुक्त किया। दोनों ने 6 जनवरी 17 को कोठी का विधिवत कब्जा प्राप्त किया था। इसके बाद दोनों रिसीवर हिरनवन कोठी का प्रत्येक रविवार को निरीक्षण करने जाते हैं। अंतिम बार 29 सितंबर 19 को जब वे निरीक्षण के लिए पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पूर्व की बाउंड्री पर नई बाउंण्ड्रीवाल का निर्माण करा दिया गया है एवं गेट लगा दिया गया है। इसी ओर एक व्यक्ति द्वारा चाय के लिए डिब्बा अवैध रुप से स्थापित करा दिया है।
निरीक्षण में पाया कि दोनों रिसीवरों को सूचना दिए बिना ही अवैध रुप से बिजली कनेक्शन स्थापित करा दिया गया है। रिसीवरों द्वारा झांसी रोड थाने में दिए गए आवेदन में बिजली कनेक्शन देने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई करने के लिए लिखा गया है। कोठी परिसर में एक टीनशेड स्थापित कर दिया गया जहां कुर्सियां, सीलिंग फैन भी चल रहा था। इस परिसर में लगे हरे-भरे पेड भी काट डाले गए थे जो वहीं पड़े थे। इस प्रकार रिसीवरों के कब्जे की संपत्ति पर अवैध प्रवेश कर आपराधिक अतिचार व चोरी का अपराध किया जाना स्पष्ट होने से कार्रवाई करने को कहा गया है।
रिसीवरों ने तुडवाया ताला निरीक्षण के दौरान कोठी परिसर में मिले बुजुर्ग व्यक्ति ने अपना नाम नहीं बताया लेकिन उसका कहना था कि यहां किसने निर्माण कराया है इसकी उसे कोई जानकारी नहीं है। उसे महल के आदेश से यहां तैनात किया गया है। यह व्यक्ति बाद में मेन गेट पर ताला लगाकर चला गया। तब दोनों रिसीवरों ने ताला तोडकऱ बाहर आने के बाद उस पर अपना ताला लगवाया।
सरदार आंग्रे को रहने के लिए दी थी हिरनवन कोठी स्व राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपने निज सचिव सरदार संभाजीराव आंग्रे को सन् 1973 में जय विलास परिसर स्थित हिरनवन कोठी रहने के लिए दी थी। इसका उपयोग उनकी बेटी चित्रलेखा राजे अपने पिता संभाजीराव आंग्रे के साथ करती थी। उन्हें यह कब्जा मौखिक रुप से दिया गया था। चित्रलेखा द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत परिवाद में कहा गया कि 13 अगस्त 1983 को शाम 5 से 6 बजे के बीच स्व माधव राव सिंधिया को छोड़ 15 लोगों ने कोठी पर तैनात कर्मचारी व चौकीदारों को बंदूक की नोक पर खदेडते हुए बाहर निकाल दिया। इस कोठी में उनके पांच पालतू कुत्ते थे, जिनमें से उन्हें केवल दो कुत्ते मिले थे। जबकि दो कुत्तों का खून वहां मिला था। ये लोग उनका घरु सामान लूटकर ले गए थे। परिवाद में कहा गया कि यह वारदात सिंधिया को हिरनवन कोठी शांति निकेतन संग्रहालय व ट्रस्ट ऑफिस पर जबरन कब्जा प्राप्त करने के लिए की गई। इस मामले में माधवराव सहित 16 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। 35 साल चले इस मामले में18 मई 18 को विशेष न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए सभी को बरी कर दिया था।