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झूला सेक्टर व मौत का कुआं की फिटनेस जांचने के लिए हर साल जिला प्रशासन और लोक निर्माण विभाग की ओएंडएम के कार्यपालन यंत्री जाती है लेकिन इस बार बिना जांचे ही एनओसी दे दी गई। मेला सेक्टर में पत्रिका टीम ने पड़ताल की। यहां करीब 60 बड़े झूले आए हुए हैं। वहीं छोटे झूलों की संख्या की करीब 30 से 40 बताई जा रही है। ऊंची झूले हों या फिर रेल झूला सभी असुरक्षित हैं।
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जवाब देने से बच रहे कार्यपालन यंत्री
लोक निर्माण विभाग ओएंडएम के कार्यपालन यंत्री जीएस चौहान को मेला में आने वाले झूला और मौत के कुंए की फिटनेस जांचने का जिम्मा दिया गया था। उन्होंने बिना जांचे ही एनओसी दे दी है। सूत्र बताते हैं कि हर एनओसी को दिए जाने के पीछे मोटा खेल हुआ है। पत्रिका टीम ने जब इस मामले की पड़ताल की। जब कार्यापालन यंत्री चौहान सेे असुरक्षित झूला सेक्टर के बारे में पूछा गया तो जवाब देने से बचते रहे।
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नहीं है सावधानी
इसी तरह मौत का कुआं का हाल बना हुआ है। करीब तीस फीट ऊंचाई दर्शकों के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है। दर्शक दीर्घा दो तलों में है। दोनों तलों में दर्शकों के लिए लगाई गई जाली की हाइट चार फीट के आस-पास है। भीड़ को कंट्रोल करने के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। यह जाली भी कमजोर है।
जीएस चौहान, कार्यपालन यंत्री, लोनिवि ओएंडएम
मेला में झूलों की सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। फिटनेस चेक कराई गई है। एनओसी ली गई है।
महेंद्र भदकारिया, झूला संचालक
झूला सेक्टर में इधर-उधर बिखरे बिजली के तार, जगह-जगह टैपिंग के तार का ढेर झूलों के पास पड़ा रहता है। यही हाल रेल झूला का है। रेल जिस पटरी पर दौड़ती है उसमें करंट होता है। पटरी के आस-पास सुरक्षा जाली नहीं है। वहीं जनरेटर के सहारे चलाया जा रहा है, उनके पट्टे सालों पुराने हैं। बीते सालों में झूला सेक्टर और मौत के कुआं में हादसे के शिकार सैलानी हो चुके हैं। इसके बावजूद सुरक्षा के इंतजामों को लेकर अनदेखा किया जा रहा है।