अधिकारी, कर्मचारियों की करतूत उसके सामने आई तो ठेकेदार ने हल्ला मचा दिया। लंबी जांच के बाद बुधवार को विश्वविद्यालय पुलिस ने छह साल पुराने फर्जीवाडे में केस दर्ज किया है।
डीएसपी मुनीष राजौरिया ने बताया करीब नौ साल पहले नगरनिगम ने पार्क में लाइट लगाने के लिए टेंडर निकाला था। इसमें दो-दो हजार रुपए में ठेकेदार महेन्द्र गुप्ता, राजेश सिंह और एस के फर्म के नाम से टेंडर फार्म दिए गए। जमा के वक्त एस के फर्म ने फार्म के साथ सिक्योरिटी राशी नहीं थी तो उसका फार्म निरस्त हो गया।
महेन्द्र गुप्ता के नाम से आए फार्म में रेट कम थे तो उन्हेंं पार्क में लाइट लगाने का काम दिया गया। कुछ महीने बाद काम पूरा होना बताया और ठेकेदार को भुगतान की प्रक्रिया शुरु की। महेन्द्र के नाम से बिल बनाकर ठेकेदार राजेश सिंह और जितेन्द्र जादौन ने बिल निगम को थमाए। पार्क अधीक्षक मुकेश बंसल और लिपिक दीपक सोनी ने फाइल को लिपिक हरिकिशन शाक्यवार के जरिए तत्कालीन अपर आयुक्त संदीप माकिन के सामने रखा।
लेकिन माकिन इस फाइल पर पहले ही टीप लगा चुके थे। इसलिए उन्हें फाइल याद थी। जब दोबारा फाइल सामने आई तो उनकी लगाई टीप में हेरफेर था। इस पर मामले में हेरफेर की आशंका हुई। कर्मचारियों से पूछताछ की तो मामले को छिपाने के लिए सांठगांठ में शामिल टीम ने चपरासी राजू उर्फ राजकुमार नागर पर उंगली उठा दी।
बताया कि राजू फाइल लाया था उसने ही हेरफेर किया है। इसलिए तत्कालीन आयुक्त ने राजू को दोषी मानकर उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने और उसे निलंबित कर सेवा से पृथक करने के आदेश दिए।