ग्वालियर, मुरैना, भोपाल, इंदौर, उज्जैन और खरगोन जिलों में रिपोर्ट आने में 286 दिन तक की देरी हुई। ग्वालियर, मुरैना, भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, उज्जैन और खरगोन में 1800 मामलों में से 814 मामले अदालत में 35 माह तक की देरी से पेश किए गए। इनमें से 65 मामले एक साल से अधिक विलंब से पेश किए गए। इस देरी के लिए कलेक्टर की अनुमति जरूरी होती है, लेकिन इस अनुमति का प्रमाण लेखापरीक्षा को नहीं दिया गया।
सरकार की मंशा पर अपील प्रकरणों के आधार पर सवाल उठता है। दरअसल, 2011 से 13 के बीच उच्च न्यायालय में केवल 60 प्रकरणों में अपील की गई। यही नहीं 2014 से 19 के दौरान जिलावार अपील प्रकरणों का रिकॉर्ड तक है। सरकार ने खाद्य सुरक्षा अपील प्रकरणों के लिए अलग से अधिकरण और न्यायालय की स्थापना तक नहीं की। एजी की रिपोर्ट तैयार होने तक विशेष न्यायालयों के गठन का प्रस्ताव विधि विभाग को भेजने की प्रक्रिया ही चल रही थी।
प्रदेश में खाद्य एवं औषधि प्रयोगशाला से सैंपल की जांच रिपोर्ट भेजने की कोई समयसीमा नहीं है। इसी तरह अमानक रिपोर्ट पर प्रकरण न्यायालय में पेश करने का समय भी तय नहीं है। इसकी वजह से अभियोजन में देरी हो रही है।
पांच साल में फूड पॉइजनिंग के शिकार हुए 3169 लोग
फूड पॉइजनिंग के 3169 मामले 2014 से पांच साल में सामने आए। ग्वालियर में 460, इंदौर में 1908, खरगोन में 108, उज्जैन में 574 और होशंगाबाद में 119 मामले थे। इनमें होशंगाबाद जिले के 110 मामले तो बाबई में शुक्करवाड़ा सरकारी विद्यालय के ही थे। यहां विषाक्त मध्यान्ह भोजन से विद्यार्थी बीमार हुए थे। इस तरह के मामलों में सबसे बड़ी दुविधा पंजीकृत चिकित्सक नहीं होना है। इन चिकित्सकों को अधिसूचित करने का प्रस्ताव जुलाई 2020 में भारतीय खाद्य संरक्षा एएवं मानक प्राधिकरण को भेजा गया।
प्रदेश के इन्हीं आठ जिलों को ऑडिट के लिए इसलिए चुना
इंदौर, भोपाल, उज्जैन : खाद्य कारोबारियों की अधिकतम संख्या और दुग्ध उत्पादन के आधार पर
होशंगाबाद, सतना, खरगोन : धार्मिक महत्व के स्थलों पर खाद्य विक्रेताओं की संख्या के आधार पर
ग्वालियर और मुरैना : मीडिया रिपोर्ट में दुग्ध उत्पादों में मिलावट के अत्याधिक जोखिम के आधार पर
(इन जिलों में संबंधित विभागों और न्यायालयीन प्रकरणों के दस्तावेज की जांच की गई)