दृढ़ इच्छा शक्ति के बिना पुरानी गल्ला मंडी को मार्केट प्लेस बनाना आसान नहीं
प्रशासन की कार्रवाई और सख्त हिदायत 24 घंटे भी नहीं बदल सकी व्यवस्थाअगले दिन ही हाट रोड पर खड़े नजर आए हाथ ठेेले, मंडी में भी दिखे जस के तस हालातदुकानें बेचने के बाद सुविधाएं और व्यवस्थाओं पर ध्यान नहीं दिया जिम्मेदारों ने
दृढ़ इच्छा शक्ति के बिना पुरानी गल्ला मंडी को मार्केट प्लेस बनाना आसान नहीं
गुना. शहरों के बीचों बीच स्थित पुरानी गल्ला मंडी क्षेत्र को प्रशासन मार्केट प्लेस के रूप में विकसित करना चाहता है। यह बेहद ही सराहनीय पहल है। लेकिन इसे धरातल पर क्रियान्यवित कराना उतना ही मुश्किल है। क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों में इस तरह का बदलाव लाने के लिए सोच तो है लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव साफ नजर आ रहा है। जिसका ताजा उदाहरण है गुरुवार को प्रशासन द्वारा यहां की गई कार्रवाई और विक्रेताओं को दी गई समझाइश का परिणाम है। अगले दिन ही सब कुछ वैसा ही नजर आया जैसा पहले था। हालांकि प्रशासनिक अधिकारी व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए मॉनीटरिंग दल गठित करने की बात कह रहे हैं लेकिन यह कब तक ठीक से मॉनीटरिंग कर पाएंगे इसे लेकर कई तरह के सवाल हैं। खैर इस नई सोच को किस तरह से अच्छी व्यवस्था में बदला जा सकेगा, कौनसी कमियों को दूर किया जाना जरूरी है, यह जानने का प्रयास पत्रिका ने दुकानदारों और अलग-अलग क्षेत्र के विक्रेताओं से बात की।
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इन बिंदुओं पर करना होगा काम
हाट रोड पर डिवाइडर के आसपास तथा सड़क के दोनों ओर खड़े होने वाले हाथ ठेले वालों को यहां से हटाने से पहले
उन्हें जहां शिफ्ट किया जाना है, वहां पर्याप्त जगह दी जाए।
इसके लिए सबसे पहले पुरानी गल्ला मंडी परिसर को सुव्यवस्थित बनाना होगा। वर्तमान में यहां लगने वाले हाथ ठेले, जमीन पर लगने वाली दुकानें तथा अन्य दुकानदारों पर किया गया अवैध कब्जा हटवाना होगा। तभी जाकर हाट रोड के ठेले वालों को जगह मिल पाएगी।
पुरानी गल्ला मंडी परिसर में सबसे पहली और बड़ी कमी सड़क का अभाव है। दुकानदारों ने बताया कि सड़क बने 15 साल से अधिक समय हो चुका है। जो लगभग पूरे परिसर से उखड़ चुकी है। जिसके कारण पूरे समय धूल उड़ती है। जो दुकानदार और ग्राहकों को परेशान करती है।
दूसरी कमी पेयजल व्यवस्था का अभाव है। परिसर में सरकारी बोर तो है लेकिन कॉप्लैक्स व अन्य जगह बनी दुकानों में कनेक्शन नहीं है। न ही परिसर में एक भी हैंडपंप है जिससे लोग पानी पी सकें।
तीसरी कमी टॉयलेट का इंजजाम न होना है। पूरे परिसर में सैकड़ों दुकानें हैं कई कॉम्पलैक्स हैं लेकिन टॉयलेट के इंतजाम कहीं नहीं हैं। परिसर में सिर्फ एक जगह सुविधाघर बना है जहां सिर्फ आसपास के दुकानदार व सब्जी विक्रेता ही जाते हैं। शेष दुकानदार खुले स्थान का उपयोग कर रहे हैं।
चौथी कमी सफाई व्यवस्था को लेकर है। चंूकि यहां परिसर के एक बड़े हिस्से में सब्जी मंडी लगती है इसलिए गंदगी भी ज्यादा होती है, उस हिसाब से सफाई नहीं हो पाती।
पांचवीं कमी पार्किंग की व्यवस्था न होना है। गौर करने वाली बात है कि मंडी परिसर में ऐसी दुकानेें ज्यादा हैं जिनका ताल्लुक किसानों से ज्यादा है। यानी कि खेती से संबंधित सामान यहां मिलता है इसलिए किसान नानाखेड़ी मंडी में फसल बेचने के बाद सीधे यहां सामान खरीदने ट्रेक्टर ट्रॉली लेकर आता है। जिसे वह चाहे जिधर खड़ा कर देता है।
कुल मिलाकर परिसर में वाहन पार्किंग के समुचित इंतजाम नहीं हैं।
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तत्कालीन एसडीएम शिवानी ने किया था उदाहरण पेश
शहर की बिगड़ी व्यवस्थाओं में बदलाव लाने की जब भी बात होती है तो सबसे पहला नाम तत्कालीन एसडीएम शिवानी गर्ग का आता है। जो सुबह 7 बजे से ही अपने काम में जुट जाती थीं। उन्होंने हाट रोड सहित पुरानी गल्ला मंडी व शास्त्री पार्क में बिगड़ी व्यवस्था को बदलने के लिए गांधीगिरी के साथ-साथ सख्ती का भी इस्तेमाल किया। यहां तक उन्होंने पुरुष व महिला दुकानदारों से झाडू लगवाकर कचरा साफ करवा दिया था। इससे पहले उन्होंने खुद झाडू लगाकर उदाहरण पेश किया। उनके जाने के बाद कोई भी अधिकारी व्यवस्था में बदलाव नहीं ला सका है।
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