जानें कैसे-सरिये की वजह से खिसक गई कोतवाल की कुर्सी ज्योतिषाचार्य शिवा गौड ने बताया कि पूर्णिमा के साथ-साथ में भद्रा भी लगी हुई है। शिवा गौड ने बताया कि शास्त्रों और पुराण में साफ लिखा है कि भद्रा काल के समय होलिका दहन नहीं करना चाहिए। ऐसा करना से अशुभ होता है। उन्होंंने बताया कि धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा काल में किया गया होली दहन अनिष्ट करने वाला होता है। इसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। दहन का
मुहूर्त भी त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महवपूर्ण है। किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाए तो पूजा करने का कोई लाभ नहीं मिलता है। होलिका दहन की पूजा मुहूर्त में न की जाए तो उसके परिणाम दुर्भाग्य और पीड़ा दायक होते है।
फूलन देवी के हत्यारोपी राणा ने नहीं लिए दहेज के लिए 31 लाख रुपये, पूर्व बसपा विधायक की बेटी से की शादी ज्योतिषाचार्य शिवा गौड ने बताया कि भद्रा काल में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। हालांकि भद्रा काल में तंत्र-मंत्र, राजनीतिक और अदालती जैसे कार्य फलदायक बताए गए है। भद्रा काल की शुरूआत और समाप्ति भी अशुभ होती है। लिहाजा इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं होते है। पुराणों के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन और
सूर्य की पुत्री मानी गई है। भद्रा का स्वभाव भी
शनि की तरह कड़क बताया जाता है। शास्त्र और पुराणों के अनुसार धरती लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ होती है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, उस दौरान शुभ कार्यों में बाधक या नाश करती है। चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में होती है तो भद्रा विष्टि करण का
योग होता हैं जब यह पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।