पापा, आज मेरा पहला एक्जाम था, मेरी मैम क्लास टीचर ने मुझे 9.15 तक रूलाया, खड़ा रखा, इसलिए क्योंकि वो चापलूसों की बात मानती हैं। उनकी किसी बात का विश्वास मत करिएगा। कल उन्होेंने तीन पीरिएड तक खड़ा रहा। आज मैनें सोच लिया है कि मैं मरने वाला हूं। मेरी आखिरी इच्छा- मेरी मैम को कहें कि किसी बच्चे को इतनी बड़ी सजा न दें।
अलविदा
पापा-मम्मी और दीदी
नोट लिखने के बाद नवनीत ने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया। आननफानन में परिवारीजनों ने उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया। इलाज के दौरान मासूम ने दम तोड़ दिया। मासूम की मौत की सूचना के बाद ढेर सारे अभिभावक स्कूल पहुंच गए। शाम को उन्होंने तोड़फोड़ शुरू कर दी। बताया जा रहा कि स्कूल के अंदर उपस्थित कर्मचारियों ने भी अभिभावकों पर जवाबी पथराव किया। इसी बीच बारिश शुरू हो गई। इस वजह से मामला बढ़ने से रह गया। फिर अभिभावक थाने पहुँच गये। वहां उन लोगों ने स्कूल प्रबंधन व शिक्षक पर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की मांग की। अभिभावकों के गुस्से को देख पुलिस ने समझाबुझाकर शांत किया और कार्रवाई के लिये आश्वस्त किया। पुलिस ने मामले में स्कूल प्रबंधक और अज्ञात स्कूल टीचर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ.अनुभूति दुबे कहती हैं कि इस तरह की घटनाएं बहुत ही अलार्मिंग हैं। पहले हम मानते थे कि तनाव केवल बड़ों में ही होता है, लेकिन असल में तनाव से कोई अछूता नहीं हैं। इस घटनाक्रम से एक बात तो स्पष्ट है कि वह स्कूल में किसी बात को लेकर साइकोलॉजिकल ट्रामा में था। उसने इसके संकेत घर पर भी दिए थे। लेकिन को समझ कोई नहीं पाया। उन्होंने बताया कि बच्चे ने अपनी बहन से भी सुसाइड के बारे में पूछा था कि यह क्या होता है? कैसे किया जाता है आदि। यह संकेत था कि उसके दिमाग में कुछ चल रहा। उन्होंने कहा कि यह घटना ऐसी नहीं कि बच्चे ने किसी आवेश में आकर कुछ किया है बल्कि सोच-समझ कर किया। अगर हम थोड़ा सा ध्यान देते तो इसे टाला भी जा सकता था। कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं जब इंसान समझ लेता है कि सबकुछ खत्म हो गया। मौत को गले लगाने के सिवा कोई चारा नहीं है। प्रो.अनुभूति बताती हैं कि ऐसा इंसान या बच्चा बातबात पर इमोशनल हो जाता है। इसका उपाय यह है कि हम बच्चे से बात करें। उसकी एक-एक बात पर गौर करें। उसकी पीड़ा को समझें। प्रो.अनुभूति दुबे कहती हैं कि छोटी उम्र के बच्चों का परिवार व स्कूल (विशेष कर शिक्षक/शिक्षिका) को बहुत ध्यान देने की जरूरत है। बच्चे को कोई बात अगर आहत करती है तो उसको समझना पड़ेगा। सबसे खास यह कि आप बच्चे को मानिवैज्ञानिक रूप से थोड़ा कठोर बनाने की कोशिश करें ताकि वह हर बात से आहत न हो जाए।