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गाज़ियाबाद

Sawan Shivratri: इस मंदिर में रावण ने की थी महादेव की अराधना, अब शिवरात्रि पर उमड़ा भक्तों कै सैलाब

भगवान दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में भक्तों की लंबी लगी कतार
कोविड-19 से बचाव करते हुए कराया जा रहा जलाभिषेक

गाज़ियाबादAug 06, 2021 / 08:39 am

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भगवान दूधेश्वरनाथ मंदिर

गाजियाबाद. देशभर में शिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। सभी जगह शिवालयों में भक्तों की लंबी कतार नजर आ रही है। हालांकि इस बार कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए मंदिरों में भीड़ काफी कम है, लेकिन गाजियाबाद स्थित प्रसिद्ध भगवान दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में भक्तों की रात 12:00 बजे से ही लंबी कतार दिखी। लोग अपनी बारी के इंतजार में जलाभिषेक करने के लिए इंतजार में खड़े रहे।
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सोशल डिस्टेंसिंग के लिए मंदिर समिति और पुलिस प्रशासन काफी प्रयास में जुटा हुआ है लेकिन भीड़ ज्यादा होने के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन देखने को नहीं मिला। भीड़ को देखते हुए बगैर मास्क मंदिर में प्रवेश बंद कर दिया गया। मंदिर गेट पर ही सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की गई है और मंदिर परिसर में भी भक्तों को नहीं रुकने दिया जा रहा। भोलेनाथ पर जलाभिषेक कर उन्हें सीधे बाहर निकाला जा रहा है। स्वयंसेवी मंदिर की व्यवस्था संभाल रहे हैं। पुलिस के जवान भी तैनात हैं। सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की आराधना करना हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन शिवरात्रि पर्व का बड़ा महत्व है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में शिव भक्त मंदिर पहुंच कर भोलेनाथ पर जलाभिषेक कर रहे हैं।
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गाजियाबाद के प्रसिद्ध भगवान दूधेश्वर नाथ मंदिर में इस दिन हर साल लाखों शिवभक्त जलाभिषेक करते हैं लेकिन इस बार कोविड-19 के कारण भीड़ पहले के मुकाबले बहुत कम नजर आ रही है लेकिन उसके बावजूद भी शिव भक्तों में भारी उत्साह दिखाई दे रहा है। इसका सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्यरात्रि 12 बजे से ही भोलेनाथ पर जलाभिषेक शुरू हो गया था। करीब 3:30 बजे सुबह भगवान भोलेनाथ की आरती हुई और फिर 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया गया। इसके बाद दोबारा से जलाभिषेक शुरू हुआ। लोग बारी-बारी से जलाभिषेक करने के लिए लाइन में खड़े हैं।
रावण के पिता ने की मंदिर की स्थापना

बताया जाता है कि गाजियाबाद के दूधेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना रावण के पिता विश्वेश्वर नाथ ने की थी और रावण ने भी इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की आराधना की थी। बताया यह भी जाता है कि यहीं पर रावण ने अपना पहला सर भगवान भोलेनाथ को अर्पित किया था। मंदिर की मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी शिव भक्त अपनी कोई भी मनोकामना लेकर आते हैं तो भगवान भोलेनाथ उस पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं।
मंदिर के महंत नारायण गिरी महाराज ने बताया कि सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की आराधना सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि सावन के महीने में सभी देवता सोए हुए होते हैं और केवल भगवान भोलेनाथ की चैतन्य रहते हैं। माना जाता है कि इन दिनों इंसान यदि भोलेनाथ की पूजा अर्चना आराधना करता है, तो भगवान भोलेनाथ उस पर अपनी असीम कृपा करते हैं । उन्होंने बताया कि हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि जिस वक्त समुद्र मंथन हुआ था उसमें जो विष निकला उसे किसी ने स्वीकार नहीं किया तो केवल भोलेनाथ ने ही पूरा विष पीकर सभी देवता और इंसानों को बचाया और तभी से भगवान भोलेनाथ कि पृथ्वी पर पूजा और विशेष आराधना होती आ रही है।

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