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CG Election 2023 : राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा रद्द, सीएम बघेल ने बताई ये बात… इसके बाद सावन माह में सवनाही पूजा के दिन से ग्रामीण क्षेत्रों में किसान इतवारी त्यौहार मनाना शुरू कर देते हैं। यह इतवारी त्यौहार कुछ गांवों में 5 रविवार तो कुछ गांवो में 7 रविवार को मनाते हैं। इस दिन किसान पूरी तरह कृषि कार्य बंद रखते हैं। जो पोला पर्व के बाद आखिरी रविवार को किसानों द्वारा अच्छे उत्पादन की कामना के साथ अपने खेतों में जाकर धूपबत्ती इत्यादि सामग्री से पूजा अर्चना कर चावल आटे व गुड़ से बनाए गए मीठा चीला को अन्नपूर्णा माता में भोग लगाया जाता है।
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दंतेवाड़ा में हादसा… यात्रियों से भरी पिकअप पलटी, 20 लोग हुए घायल, 4 की हालत गंभीर गरीब भी चढ़ा सके इसलिए गुड़ व चावल आटे का चीला की परंपराइतवारी त्यौहार के संबंध में पं. उपकार शुक्ला ने बताया कि इतवारी त्यौहार पुराने समय में बनाया गया एक ग्रामीण व्यवस्था है। इस त्यौहार में चीला चढ़ाने की परंपरा बनाई गई थी। चीला मुख्य रूप से चावल आटा और गुड़ का मिश्रण होता है।
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रेलवे ने बढ़ाई मुसीबत, ट्रेनों के रद्द होने से छत्तीसगढ़ से 44,800 टिकट कैंसिल, अब डेढ़ लाख यात्री को देने होंगे दोगुने किराए अर्थात गुड़ चीला का अर्थ मिठाई से है। पहले के जमाने में सबके पास धन एक समान नहीं था, तो चीला और गुड़ को परंपरा में लाया गया। ताकि सभी वर्ग इस मिठाई को आसानी से बना सके। जिससे वर्ग भेद को मिटाया जा सके। इतवारी त्यौहार मुख्य रूप से फसल और आनंद से संबंधित है। जिसमें ग्रामीण मां अन्नपूर्णा को चीला अर्पित करके उसे भोग के रूप में लेकर इस विशेष दिन का आनंद लेवें।
अंचल के कई गांवों में धान की फसल पर चीला चढ़ाने पुरानी पीढ़ी की परंपरा के चलते आज भी किसान इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रचलन में रखे हुए हैं। जिसका प्रत्येक वर्ष बखूबी से निर्वहन किया जाता हैं। वहीं, कुछ गांवों में पोला पर्व के दिन धान की फसल पर गर्भ धारण होने के बाद गांवों में मनाए जाने वाला इतवारी त्यौहार के अंतिम रविवार को गोदभराई के रूप में भी मानते हैं।