दरअसल, एप्पल ने तीन वर्ष पहले यूजर्स को बिना जानकारी दिए एक अपडेट जारी किया था। इस अपडेट से यूजर्स के पुराने iPhone स्लो हो गए। यूज़र्स को इस अपडेट के बारे में कंपनी की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई थी। बाद में जब यूजर्स को इस बारे में पता चला तो उन्होंने शिकायत की। साथ ही लोगों ने अंदाजा लगाया कि एप्पल नए फोन खरीदने के लिए मजबूर कर पुराने आईफोन को स्लो कर रही है।
इन आरोपों पर कंपनी ने सफाई देते हुए कहा कि पुराने आईफोन्स को इसलिए स्लो किया जा रहा है, जिससे पुरानी बैटरी की वजह से फोन खुद से शटडाउन न हों या फिर आईफोन में कोई दूसरी परेशानियां न आए। हालांकि लोगों को कंपनी की यह दलील समझ से परे लगी। इसके बाद अमरीका के लगभग 34 राज्यों ने कंपनी के खिलाफ जांच शुरू कर दी।
अमरीका के राज्यों ने कहा कि एप्पल पुराने आईफोन स्लो कर लोगों को नए आईफोन खरीदने के लिए मजबूर कर रही है। पुराने फोन को अपडेट के जरिए स्लो किया जाता है ताकि लोग नए iPhone मॉडल्स खरीद सकें। इस मामले में Arizona के अटॉर्नी जर्नल मार्क बर्नोविक ने एक बयान में कहा कि बड़ी कंपनियों को यूज़र्स को मैनिपुलेट नहीं करना चाहिए और पूरी सच्चाई बतानी चाहिए।
प्रत्येक यूजर को 25 डॉलर देने का आदेश
अमरीकी कोर्ट ने इस मामले में एप्पल के उन सभी अमरीकी यूजर्स को 25 डॉलर देने का आदेश दिया, जो इस अपडेट से प्रभावित हुए हैं। इसमें iPhone 6, iPhone 6s, iPhone 6s Plus, iPhone 7, iPhone 7 Plus और iPhone SE यूजर्स सबसे अधिक प्रभावित हुए। एप्प्ल ने भी जुर्माना भरने के लिए हां कर दिया।
हालांकि एप्पल ने जुर्माना देने के लिए तो हां कर दी, लेकिन उसने अपनी गलती नहीं मानी। कंपनी का कहना है कि नए अपडेट से पुराने आईफोन स्लो किए गए, लेकिन ऐसा फोन और बैटरी की सुरक्षा के लिए किया गया। पेनल्टी लगने के बाद एप्पल ने दोबारा एक अपडेट दिया। इस अपडेट में बैटरी से जुड़ा एक फीचर दिया गया, जिसके जरिए यूज़र्स बैटरी की मैक्सिमम कैपिसिटी ख़ुद चेक कर सकते हैं।