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सरकार से अलग इत्तेफाक रखते हैं आरबीआई गवर्नर
अभी तक केंद्र सरकार ने देश में मौजूद मंदी को मंदी नहीं माना है। ना तो देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस बारे में कोई जवाब देने को तैयार है। ना ही देश के प्रधानमंत्री इस बारे में कुछ कह रहे हैं। शुक्रवार को प्रेस वार्ता के दौरान भी वित्त मंत्री देश में छाई मंदी और गिरती जीडीपी के सवालों पर कोई जवाब नहीं दिया था। ना ही वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर इस बारे में कुछ बोले। वहीं सरकार की सोच के विपरीत आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने साफ किया कि देश में मंदी का माहौल बना हुआ है। जिसके कारण सिर्फ वैश्विक ही नहीं है। मतलब साफ है कि देश में सरकार की नीतियों की वजह से भी मंदी का माहौल बना हुआ है।
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क्या रघुराम और उर्जित की राह पर दास
भले ही मौजूदा आरबीआई गवर्नर ने सरकार के विपरीत बयान खुलकर ना दिया हो, लेकिन मंंदी के माहौल के बीच देश की ग्रोथ और लक्विडिटी बढ़ाने का प्रेशर उनपर और सरकार दोनों पर है। इसके विपरीत मौद्रिक समीक्ष बैठक के बाद गवर्नर ने साफ कर दिया था कि वो आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती करने में सक्षम नहीं होंगे। इस बार भी आरबीआई ने रेपो और रिजर्व रेपो दरों में किसी तरह की कटौती नहीं की थी। वहीं सरकार पर इस वक्त देश की ग्रोथ बढ़ाने का प्रेशर बना हुआ है। जिसके लिए लिक्विडीटी की जरुरत है। ऐसे में अगर सरकार आरबीआई पर प्रेशर बनाता है तो आने वाले दिनों में सरकार और आरबीआई के बीच फिर से खटास देखने को मिल सकती है। आपको बता दें कि इससे पहले पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और उर्जित पटेल सरकार के खिलाफ जा चुके हैं। जिसके बाद सरकार ने एक आईएएस ऑफिसर शक्तिकांत दास को आरबीआई गवर्नर बनाया था।
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केंद्रीय बैंक ने समय से पहले उठाए कदम
शक्तिकांत दास की ओर से सोमवार को बयान आया है कि आर्थिक मंदी को देखते हुए आरबीआई ने समय से पहले ही सकारात्मक कदम उठा लिए। लगातार पांच बार ब्याज दाों में कटौती और साथ लिक्विडिटी को बढ़ाने का काम किया। वहीं उन्होंने 1500 से ज्यादा कंपनियों के सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि इन्वेस्टमेंट साइकल रिवाइवल के संकेत दिखा रहा है। उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत के ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा बनना बेहद जरूरी है। केंद्र और राज्य सरकार बेसिक इंफ्रा ज्यादा से ज्यादा खर्च करें ताकि आर्थिक वृद्घि में इजाफा किया जा सके।