शनि जयंती 2020 : पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
प्राचीन कथानुसार, इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को मृत्यु के बाद भी वापिस ले आई थी। मान्यता है कि इस दिन जो भी विवाहित महिला व्रत रखकर विधिवत पूजा आराधना करती है उनके पति का रक्षा अनेक संकटों से होती है।
व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि 21 मई को रात 9 बजकर 40 मिनट पर आरंभ होगी, एवं अमावस्या का समापन 22 मई को रात 10 बजकर 10 मिनट पर होगा।
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वट सावित्री व्रत पूजा-विधि
व्रत करने वाली व्रती महिलाएं वट सावित्री (ज्येष्ठ अमावस्या) व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने ईष्ट देव के समक्ष व्रत करने का संकल्प लें। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक अमावस्या तिथि रहेगी, इसलिए पूरे दिन में अपनी सुविधानुसार विधिवत बरगद पेड़ का पूजन करें। पूजन में 24 बरगद के फल, 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष का पूजन किया जाता है। पूजा में 12 पूरियां और 12 बरगद फल को हाथ में लेकर वट वृक्ष पर अर्पित करें।
इसके बाद एक लोटा शुद्धजल चढ़ाएं, फिर वृक्ष पर हल्दी, रोली और अक्षत से स्वास्तिक बनाकर पूजन करें। धूप-दीप दान करने के बाद कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें। एक परिक्रमा के बाद एक चने का दाना भी छोड़ते रहे। फिर 12 कच्चे धागे वाली माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें। शाम को व्रत खोलने से पहले 11 चने दाने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत खोले।
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